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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 6.djvu/५७

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इन्द्रदेव-(मुस्करा कर) मेरे सिवाय कोई गैर यहाँ आ नहीं सकता।

तेजसिंह-तथापि-'चिलेण्डोला'।

इन्द्रदेव-'चक्रधर'।

वीरेन्द्र सिंह-मैं एक बात और पूछना चाहता हूँ।

इन्द्रदेव -आज्ञा !

वीरेन्द्रसिंह-वह स्थान कैसा है, जहाँ तुम रहा करते हो और जहाँ मायारानी अपने दारोगा को लेकर तुम्हारे पास गई थी ?

इन्द्रदेव-वह स्थान तिलिस्म से सम्बन्ध रखता है और यहाँ से थोड़ी ही दूर पर है । मैं स्वयं आप लोगों को ले चल कर वहां की सैर कराऊँगा। इसके अतिरिक्त अभी मुझे बहुत-सी बातें कहनी हैं, पहले आप लोग भोजन इत्यादि से छुट्टी पा लें।

तेजसिंह-हम लोग अभी मशाल की रोशनी में क्या आप ही लोगों को पहाड़ से उतरते देख रहे थे?

इन्द्रदेव--जी हाँ, मैं एक निराले ही रास्ते से यहाँ आया हूँ। आप लोग बेशक ताज्जुब करते होंगे कि पहाड़ से कौन उतर रहा है । परन्तु मैं अकेला ही नहीं आया हूँ। बल्कि कई तमाशे भी अपने साथ लाया हूँ, मगर उनके जिक्र का अभी मौका नहीं है।

इतना कह कर इन्द्रदेव उठ खड़ा हुआ और देखते-देखते दूसरी तरफ चला गया,मगर अपनी इस बात से कि-"कई तमाशे भी अपने साथ लाया हूँ" कइयों को ताज्जुब और घबराहट में डाल गया ।


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थोड़ी ही देर बाद इन्द्रदेव फिर वहां आया। अबकी दफे उसके साथ कई नकाबपोश भी थे, जो अपने हाथ में तरह-तरह की खाने-पीने की चीजें लिए हुए थे। एक के हाथ में जल था। जल से जमीन धोई गई और खाने-पीने की चीजें वहाँ रख कर वे नकाबपोश लौट गये तथा पुनः कई जरूरी चीजें लेकर आ पहुँचे। इन्तजाम ठीक हो जाने पर इन्द्रदेव ने कायदे के साथ सभी को भोजन कराया और इस काम से छुट्टी मिलने पर उस बारहदरी में चलने के लिए अर्ज किया, जिसे उसने यहां पहुंच कर सजाया था और जिसका हाल ऊपर के बयान में लिख चुके हैं।

वास्तव में यह बारहदरी बड़ी खूबी के साथ सजाई गई थी। यहां सभी के लिए कायदे के साथ बैठने और आराम करने का सामान मौजूद था। जिसे देख कर महाराज बहुत प्रसन्न हुए और इन्द्रदेव की तरफ देख कर बोले,"क्या यह सब सामान इसी बाग में मौजूद था ?"

इन्द्रजीतसिंह-जी हाँ, केवल इतना ही नहीं बल्कि इस बाग में जितनी इमारतें हैं, उन सभी को सजाने और दुरुस्त करने के लिए यहाँ काफी सामान है, इसके अति-