अपनी जबान से अच्छी तरह बयान नहीं कर सकता । अतः यदि आज्ञा हो तो मैं इसका हाल पूरा-पूरा बयान कर जाऊँ, क्योंकि मैं भी भूतनाथ का हाल उतना ही जानता हूँ, जितना स्वयं भूतनाथ । भूतनाथ जहाँ तक बयान कर चुके हैं, उसे मैं बाहर खड़ा-खड़ा सुन भी चुका हूँ। जब मैंने समझा कि अब भूतनाथ से अपना हाल नहीं कहा जाता तब मैं यह अर्ज करने के लिए हाजिर हुआ हूँ। (भूतनाथ की तरफ देखकर) मेरे इस कहने से आप यह न समझिएगा कि मैं आपके साथ दुश्मनी कर रहा हूँ। नही, जो काम आपके सुपुर्द किया गया है, उसे आपके बदले में मैं आसानी के साथ कर देना चाहता हूँ।"
इन दोनों आदमियों (दलीपशाह) को महाराज तथा और सब ने भी ताज्जुब के साथ देखा था, मगर यह समझ कर इन्द्रदेव से किसी ने कुछ भी न पूछा कि जो कुछ है, थोड़ी देर में मालूम हो ही जायेगा, मगर जब दलीपशाह ऊपर लिखी बात बोलकर चुप हो गया, तब महाराज ने भेद-भरी निगाहों से इन्द्रजीतसिंह की तरफ देखा और कुमार ने झुककर धीरे से कुछ कह दिया, जिसे वीरेन्द्रसिंह तथा तेजसिंह ने भी सुना तथा इनके जरिए से हमारे और साथियों को भी मालूम हो गया कि कुमार ने क्या कहा ।
दलीपशाह की बात सुनकर इन्द्रदेव ने महाराज की तरफ देखा और हाथ जोड़कर कहा, "इन्होंने (दलीपशाह ने) जो कुछ कहा, वास्तव में ठीक है, मेरी समझ में अगर भूतनाथ का किस्सा इन्हीं की जवानी सुन लिया जाये तो कोई हर्ज नहीं है !" इसके जवाब में महाराज ने मंजूरी के लिए सिर हिला दिया।
इन्द्रजीतसिंह--(भूतनाथ की तरफ देखकर) भूतनाथ, इसमें तुम्हें किसी तरह का उज्र है ?
भूतनाथ--(महाराज की तरफ देखकर और हाथ जोड़कर) जो महाराज की मर्जी, मुझमें 'नहीं' कहने की सामर्थ्य नहीं है । मुझे क्या खबर थी कि कसूर माफ हो जाने पर भी यह दिन देखना नसीब होगा। यद्यपि यह मैं खूब जानता हूँ कि मेरा भेद अब किसी से छिपा नहीं रहा, परन्तु फिर भी अपनी भूल बार-बार कहने या सुनने से लज्जा बढ़ती ही जाती है कम नहीं होती । खैर कोई चिन्ता नहीं, जैसा होगा वैसा अपने कलेजे को मजबूत करूंगा और दलीपशाह की कही हुई बातें सुनूंगा तथा देलूंगा कि ये महाशय कुछ झूठ का भी प्रयोग करते हैं या नहीं।
दलीपशाह--नहीं-नहीं भूतनाथ, मैं झूठ कदापि न बोलूंगा, इससे तुम बेफिक रहो ! (इन्द्रदेव की तरफ देख के) अच्छा तो अब मैं प्रारम्भ करता हूँ। दलीपशाह ने इस तरह कहना शुरू किया-
"महाराज, इसमें कोई सन्देह नहीं कि ऐयारी के फन में भूतनाथ परले सिरे का उस्ताद और तेज आदमी है । अगर यह ऐयाशी के दरिया में गोते लगाकर अपने को बर्बाद न कर दिए होता तो इसके मुकाबले का ऐयार आज दुनिया में दिखाई न देता। मेरी सूरत देख के ये चौंकते और डरते हैं और इनका डरना वाजिब ही है मगर अब मैं इनके साथ किसी तरह का बुरा बर्ताव नहीं कर सकता, क्योंकि मैं ऐसा करने के लिए दोनों कुमारों से प्रतिज्ञा कर चुका हूँ और इनकी आज्ञा मैं किसी तरह टाल नहीं सकता क्योंकि इन्हीं की बदौलत आज मैं दुनिया की हवा खा रहा हूँ। (भूतनाथ की