पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 6.djvu/७५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
75
 

तरफ देख के) भूतनाथ, मैं वास्तव में दलीपशाह हूँ, उस दिन तुमने मुझे नहीं पहचाना तो इसमें तुम्हारी आँखों का कोई कसूर नहीं है, कैद की सख्तियों के साथ-साथ जमाने की चाल ने मेरी सूरत ही बदल दी है, तुम तो अपने हिसाब से मुझे मार हो चुके थे और तुम्हें मुझसे मिलने की कभी उम्मीद भी न थी मगर सुन लो और देख लो कि ईश्वर की कृपा से मैं अभी तक जीता-जागता तुम्हारे सामने खड़ा हूँ। यह कुंअर साहब के चरणों का प्रताप है । अगर मैं कैद न हो जाता तो तुमसे बदला लिए बिना कभी न रहता, मगर तुम्हारी किस्मत अच्छी थी जो मैं कैद हो रह गया और छूटा भी तो कुंअर साहब के हाथ से, जो तुम्हारे पक्षपाती हैं । तुम्हें इन्द्रदेव से बुरा न मानना चाहिए और न यह सोचना चाहिए कि तुम्हें दुःख देने के लिए इन्द्रदेव तुम्हारा पुराना पचड़ा खुलवा रहे हैं ! तुम्हारा किस्सा तो सब को मालूम हो चुका है, इस समय ज्यों का त्यों चुपचाप रह जाने पर तुम्हारे चित्त को शान्ति नहीं मिल सकती और तुम हम लोगों की सूरत देख-देखकर दिन-रात तरवुद में पड़े रहोगे अतः तुम्हारे पिछले ऐबों को खोलकर इन्द्रदेव तुम्हारे चित्त को शान्ति दिया चाहते हैं और तुम्हारे दुश्मनों को, जिनके साथ तुम ही ने बुराई की है, तुम्हारा दोस्त बना रहे हैं । ये यह भी चाहते हैं कि तुम्हारे साथ-ही-साथ हम लोगों का भेद भी खुल जाय और तुम जान जाओ कि हम लोगों ने तुम्हारा कसूर माफ कर दिया है क्योंकि अगर ऐसा न होगा तो जरूर तुम हम लोगों को मार डालने की फिक्र में पड़े रहोगे और हम लोग इस धोखे में रह जायेंगे कि हमने इनका कसूर तो माफ ही कर दिया,अब ये हमारे साथ बुराई न करेंगे। (जीतसिंह की तरफ देखकर) अब मैं मतलब की तरफ झुकता हूँ और भूतनाथ का किस्सा बयान करता हूँ।

जिस जमाने का हाल भूतनाथ बयान कर रहा है, अर्थात् जिन दिनों भूतनाथ के मकान से दयाराम गायब हो गए थे उन दिनों यही नागर काशी के बाजार में वेश्या बनकर बैठी हुई अमीरों के लड़कों को चौपट कर रही थी। उसकी बढ़ी-चढ़ी खूबसूरती लोगों के लिए जहर हो रही थी और माल के साथ ही विशेष प्राप्ति के लिए यह लोगों की जान पर भी वार करती थी। यही दशा मनोरमा की भी थी परन्तु उसकी बनिस्बत यह बहुत ज्यादा रुपए वाली होने पर भी नागर की-सी खूबसूरत न थी, हाँ, चालाक जरूर ज्यादा थी। और लोगों की तरह भूतनाथ और दयाराम भी नागर के प्रेमी हो रहे थे। भूतनाथ को अपनी ऐयारी का घमण्ड था और नागर को अपनी चालाकी का। भूतनाथ नागर के दिल पर कब्जा करना चाहता था और नागर इसकी तथा दयाराम की दौलत अपने खजाने में मिलाना चाहती थी।

दयाराम की खोज में घर से शागिर्दो को साथ लिए हुए बाहर निकलते ही भूतनाथ ने काशी का रास्ता लिया और तेजी के साथ सफर तय करता हुआ नागर के मकान पर पहुँचा । नागर ने भूतनाथ की बड़ी खातिरदारी और इज्जत की तथा कुशल-मंगल पूछने के बाद यकायक यहाँ आने का सबब भी पूछा।

भूतनाथ ने अपने आने का ठीक-ठीक सबब तो नहीं बताया, मगर नागर समझ गई कि कुछ दाल में काला जरूर है। इसी तरह भूतनाथ को भी इस बात का शक पैदा हो गया कि दयाराम की चोरी में नागर का कुछ लगाव जरूर है अथवा यह उन आद-