पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 6.djvu/८०

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मैं-खैर, अगर तुम्हारे किए हो सके तो तुम बिल्कुल कसूर मेरे ही सिर थोप देना, मैं अपनी सफाई आप कर लंगा, मगर इतना समझ रखो कि लाख कोशिश करने पर भी तुम अपने को बचा नहीं सकते, क्योंकि मैंने इन्हें खोज निकालने में जो कुछ मेहनत की थी, वह इन्द्रदेवजी के कहने से की थी, न तो मैं अपनी प्रशंसा कराना चाहता था और न इनाम ही लेना चाहता था, बल्कि जरूरत पड़ने पर मैं इन्द्रदेव की गवाही दिला सकता हूँ और तुम भी अपने को बेकसूर साबित करने के लिए नागर को पेश कर देना, जिसके कहने और सिखाने में आकर तुमने मेरे साथ दुश्मनी पैदा कर ली।

इतना सुनकर भूतनाथ सन्नाटे में आ गया । सिर झुकाकर देर तक सोचता रहा और इसके बाद लम्बी सांस लेकर उसने मेरी तरफ देखा और कहा, "बेशक मुझे नागर कम्बख्त ने धोखा दिया ! अब मुझे भी इन्हीं के साथ मर-मिटना चाहिए।" इतना कह-कर भूतनाथ ने खंजर हाथ में ले लिया, मगर कुछ न कर सका, अर्थात् अपनी जान न दे सका।

महाराज, जवामर्दो का कहना बहुत ठीक है कि बहादुरों को अपनी जान प्यारी नहीं होती । वास्तव में जिसे अपनी जान प्यारी होती है, वह कोई हौसले का काम नहीं कर सकता और जो अपनी जान हथेली पर लिए रहता है और समझता है कि दुनिया में मरना एक बार ही है, कोई बार-बार नहीं मरता, वही सब कुछ कर सकता है । भूत-वहादुर होने में सन्देह नहीं, परन्तु इसे अपनी जान प्यारी जरूर थी और इस उल्टी बात का सबब यही था कि वह ऐयाशी के नशे में चूर था। जो आदमी ऐयाश होता है, उसमें ऐयाशी के सबब कई तरह की बुराइयाँ आ जाती हैं और बुराइयों की बुनियाद जम जाने के कारण ही उसे अपनी जान प्यारी हो जाती है, तथा वह कोई भी काम नहीं कर सकता। यही सबब था कि उस समय भूतनाथ जान न दे सका, बल्कि उसकी हिफाजत करने का ढंग जमाने लगा, नहीं तो उस समय मौका ऐसा ही था, इससे जैसी भूल हो गई थी, उसका बदला तभी पूरा होता जब यह भी उसी जगह अपनी जान दे देता और उस मकान से तीनों लाशें एक साथ ही निकाली जाती।

भूतनाथ ने कुछ देर तक सोचने के बाद मुझसे कहा-“मुझे इस समय अपनी जान भारी हो रही है है और मैं मर जाने के लिए तैयार हूँ, मगर मैं देखता हूँ कि ऐसा करने से भी किसी को फायदा नहीं पहुँचेगा। मैं जिसका नमक खा चुका हूँ और खाता हूँ, उसका और भी नुकसान होगा क्योंकि इस समय वह दुश्मनों से घिरा हुआ है । अगर मैं जीता रहूँगा तो उनके दुश्मनों का नामोनिशान मिटाकर उन्हें बेफिक्र कर सकूँगा, अतएव मैं माफी माँगता हूं कि तुम मेहरबानी कर मुझे सिर्फ दो साल के लिए जीता छोड़ दो।"

मै--दो वर्ष के लिए क्या, जिन्दगी-भर के लिए मैं तुम्हें छोड़ देता हूँ। जब तुम मुझसे लड़ना नहीं चाहते तो मैं क्यों तुम्हें मारने लगा ? बाकी।खामखाह मुझसे दुश्मनी पैदा कर ली है, सो उसका नतीजा तुम्हें आप से आप मिल जायगा जब लोगों को यह मालूम होगा कि भूतनाथ के हाथ से बेचारा दयाराम मारा यह बात कि तुमने गया।