पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 6.djvu/८१

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भूतनाथ--नहीं-नहीं, मेरा मतलब तुम्हारी पहली बात से नहीं है, बल्कि दूसरी बात से है, अर्थात् अगर तुम चाहोगे तो लोगों को इस बात का पता ही नहीं लगेगा कि दयाराम भूतनाथ के हाथ से मारा गया।

मैं--यह क्योंकर छिप सकता है ?

भूतनाथ--अगर तुम छिपाओ तो सब छिप जायगा।

मुख्तसिर यह कि धीरे-धीरे बातों को बढ़ाता हुआ भूतनाथ मेरे पैरों पर गिर पड़ा और बड़ी खुशामद के साथ कहने लगा कि तुम इस मामले को छिपाकर मेरी जान बचा लो । केवल इतना ही नहीं, इसने मुझे हर तरह के सब्जबाग दिखाए और कसमें दे-देकर मेरी नाक में दम कर दिया। लालच में तो मैं नहीं पड़ा, मगर पिछली मुरौवत के फेर में जरूर पड़ गया और भेद को छिपाये रखने की कसम खाकर अपने साथियों को साथ लिए हुए मैं उस घर के बाहर निकल गया। भूतनाथ तथा दोनों लाशों को उसी तरह छोड़ दिया, फिर मुझे मालूम नहीं कि भूतनाथ ने उन लाशों के साथ क्या बर्ताव किया।"

यहाँ तक भूतनाथ का हाल कहकर कुछ देर के लिए दलीपशाह चुप हो गया और उसने इस नीयत से भूतनाथ की तरफ देखा कि देखें यह कुछ बोलता है या नहीं। इस समय भूतनाथ की आँखों से आँसू की नदी बह रही थी और वह हिचकियाँ ले-लेकर रो रहा था । बड़ी मुश्किल से भूतनाथ ने अपने दिल को सम्हाला और दुपट्टे से मुह पोंछ कर कहा, "ठीक है, ठीक है, जो कुछ दलीपशाह ने कहा, सब सच है । मगर यह बात मैं कसम खाकर कह सकता हूँ कि मैंने जानबूझकर दयाराम को नहीं मारा । वहाँ राजसिंह को खुले हुए देखकर मेरा शक यकीन के साथ बदल गया और चारपाई पर पड़े हुए देखकर भी मैंने दयाराम को नहीं पहचाना । मैंने समझा कि यह भी कोई दलीपशाह का साथी होगा। बेशक दलीपशाह पर मेरा शक मजबूत हो गया था और मैं समझ बैठा था कि जिन लोगों ने दयाराम के साथ दुश्मनी की है दलीपशाह जरूर उनका साथी है। यह शक यहाँ तक मजबूत हो गया था कि दयाराम के मारे जाने पर भी दलीपशाह की तरफ से मेरा दिल साफ न हुआ। बल्कि मैंने समझा कि इसी (दलीपशाह) ने दयाराम को वहाँ लाकर कैद किया था। जिस नागर पर मुझे शक हुआ था, उसी कम्बख्त की जादू-भरी बातों में मैं फंस गया और उसी ने मुझे विश्वास दिला दिया कि इसका कर्ता-धर्ता दलीप शाह है । यही सबब है कि इतना हो जाने पर भी मैं दलीपशाह का दुश्मन बना ही रहा। हाँ, दलीपशाह ने एक बात नहीं कही, वह यह है कि इस भेद को छिपाये रखने की कसम खाकर भी दलीपशाह ने मुझे सूखा नहीं छोड़ा। इन्होंने कहा कि तुम कागज पर लिखकर माफी मांगो तब मैं तुम्हें माफ करके यह भेद छिपाये रखने की कसम खा सकता हूँ । लाचार होकर मुझे ऐसा करना पड़ा और मैं माफी के लिए चिट्ठी लिख हमेशा के लिए इनके हाथ में फंस गया।

दलीपशाह--बेशक यही बात है, और मै अगर ऐसा न करता तो थोड़े ही दिन बाद भूतनाथ मुझे दोपी ठहरा कर आप सच्चा बन जाता। खैर, अब मैं इसके आगे का हाल बयान करता हूँ जिसमें थोड़ा-मा हाल तो ऐसा ही होगा जो मुझे खास भूतनाथ से