पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 6.djvu/९०

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महाराजा--भूतनाथ वगैरह को मौका देना चाहिए कि वे अपने सम्बन्धियों से बखूबी मिल-जुल कर अपने दिल का खटका निकाल लें, क्योंकि हम लोग तो उनका हाल वहाँ चल कर ही सुनेंगे।

जीतसिंह--बहुत खूब।

इतना कहकर जीतसिंह उठ खड़े हुए और कमरे से बाहर चले गये।


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इन्द्रदेव के इस स्वर्ग-तुल्य स्थान में बंगले से कुछ दूर हट कर बगीचे के दक्खिन तरफ एक घना जामुन का पेड़ है, जिसे सुन्दर लताओं ने घेर कर देखने योग्य बना रखा है और वहाँ एक कुंज की-सी छटा दिखाई पड़ती है। उसी के नीचे साफ पानी का एक चश्मा भी बह रहा है । अपनी सुरीली बोली से लोगों के दिल लुभा लेने वाली चिड़ियाएँ संध्या का समय निकट जान अपने घोंसलों के चारों तरफ फुदक-फुदक कर अपने चुलबुले बच्चों को चैतन्य करती हुई कह रही हैं, "देखो, मैं बहुत दूर से तुम लोगों के लिए दाना-पानी अपने पेट में भर लाई हूँ, जिससे तुम्हारी सन्तुष्टि हो जायगी।"

यह रमणीक स्थान ऐसा है कि यहाँ दो-चार आदमी छिप कर इस तरह बैठ सकते हैं कि वे चारों तरफ के आदमियों को बखूबी देख लें, पर उन्हें कोई भी न देखे । इस स्थान पर हम इस समय भूतनाथ और उसकी पहली स्त्री, (कमला की माँ) को पत्थर की चट्टानों पर बैठे बातें करते हुए देख रहे हैं। ये दोनों मुद्दत के बिछड़े हुए हैं, और दोनों के दिल में नहीं तो कमला की माँ के दिल में जरूर शिकायतों का खजाना भरा हुआ है जिसे वह इस समय बेतरह उगलने के लिए तैयार है। प्यारे पाठक, आइये हम आप मिलकर जरा इन दोनों की बातें तो सुन लें

भूतनाथ--शान्ता', आज तुमसे मिलकर मैं बहुत ही प्रसन्न हुआ।

शान्ता--क्यों ? जो चीज किसी कारणवश खो जाती है, उसे यकायक पाने से प्रसन्नता हो सकती है, मगर जो चीज जान-बूझ कर फेंक दी जाती है, उसके पाने की प्रसन्नता कैसी?

भूतनाथ--किसी को कहीं से एक पत्थर का टुकड़ा मिल जाय और वह उसे बेकार या बदसूरत समझ कर फेंक दें तथा कुछ समय के बाद जब उसे यह मालूम हो कि वास्तव में वह हीरा था पत्थर नहीं, तो क्या उसके फेंक देने का उसको दुःख न होगा ? या उसे पुनः पाकर प्रसन्नता न होगी?

शान्ता-–अगर वह आदमी, जिसने हीरे को पत्थर समझकर फेंक दिया है, यह जानकर कि वह वास्तव में हीरा था, उसकी खोज करे, या इस विचार से कि उसे मैंने

1. शान्ता कमला की मां का नाम था।