पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 6.djvu/९७

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दारोगा की शैतानियों का सबूत उससे मिलकर ही बटोर लें, दारोगा के मतलब ही का जवाब दिया था जिससे खुश होकर उसने कई चिट्ठियों में दलीपशाह को तरह-तरह के सब्जबाग दिखलाए, मगर जब दारोगा की कई चिट्ठियां दलीपशाह ने बटोर ली तब साफ जवाब दे दिया। उस समय दारोगा बहुत घबराया और उसने सोचा कि कहीं ऐसा न हो कि दलीपशाह मुझसे दुश्मनी करके मेरा यह भेद खोल दे, अतः किसी तरह उसे गिरफ्तार कर लेना चाहिए। उस समय कम्बख्त दारोगा आपसे मिला और उसने दलीप-शाह की पहली चिट्ठियाँ आपको दिखा कर खुद आप ही को दलीपशाह का दुश्मन बना दिया, बल्कि आप ही के जरिये से दलीपशाह को गिरफ्तार भी करा लिया ।

भूतनाथ-ठीक है, इस विषय में मैंने बहुत बड़ा धोखा खाया।

शान्ता-मगर दलीपशाह को गिरफ्तार कर लेने पर भी वे चिट्ठियाँ दारोगा के हाथ न लगी क्योंकि वे दलीपशाह की स्त्री के कब्जे में थीं। हम लोग उन्हें अपने साथ लाये हैं जिसमें दारोगा के मुकदमे में पेश करें।

भूतनाथ-अब मेरे दिल का पूरा खुटका निकल गया और मुझे निश्चय हो गया कि हरनाम की कोई कार्रवाई मेरे खिलाफ न होगी।

शान्ता-भला वह कोई काम ऐसा क्यों करेगा जिससे आपको तकलीफ हो ? ऐसा खयाल भी आपको न रखना चाहिए। इन दोनों में इस तरह की बातें हो रही थी कि किसी के आने की आहट मालूम हुई। भूतनाथ ने जब घूमकर देखा तो नानक पर निगाह पड़ी। जब वह पास आया तब भूतनाथ ने उससे पूछा, "क्या चाहते हो?"

नानक-मेरी माँ आपसे मिलना चाहती हैं।

भूतनाथ-तो यहाँ पर क्यों न चली आई ? यहाँ कोई गैर तो था नहीं।

नानक-सो तो वही जानें।

भूतनाथ-अच्छा, जाओ, उसे इसी जगह मेरे पास भेज दो।

नानक-बहुत अच्छा।

इतना कहकर नानक चला गया और इसके बाद शान्ता ने भूतनाथ से कहा,"शायद उसे मेरे सामने आपसे बातचीत करना मंजूर न हो, शर्म आती हो या किसी तरह का और कुछ खयाल हो, अतः आज्ञा दीजिए तो मैं चली जाऊँ, फिर...

भूतनाथ-नहीं-नहीं, उसे जो कुछ कहना होगा तुम्हारे सामने ही कहेगी, तुम चुपचाप बैठी रहो।

शान्ता-सम्भव है कि वह मेरे रहते यहाँ न आवे, या उसे इस बात का खवाल हो कि तुम मेरे सामने उसकी बेइज्जती करोगे।

भूतनाथ-हो सकता है, मगर (कुछ सोच के) अच्छा, तुम जाओ।

इतना सुनकर शान्त। वहाँ से उठी और बैंगले की तरफ रवाना हुई। इस समय सूर्य अस्त हो चुका था और चारों तरफ से अंधेरी झुकी आती थी।