२८
निराला
ओर। अन्त में अस्पताल ले जाने का ही निश्चय किया। पास एक रईस रहते थे। उनके यहाँ जाकर उसने कुल क़िस्सा बयान किया, और उनकी मोटर माँगी। उन्होंने घड़ी देखकर कहा—"सिर्फ़ छ मिनट समय रह गया है, हमें डिप्टी कमिश्नर साहब से मिलने के लिये जाना है।" कहकर निगाह फेर ली। एक बार उनकी तरफ़ देखकर युवक अपने कमरे में चला आया। उस बँगले में ३-४ भले आदमी किराये पर रहते थे। जब घायल को लेकर युवक आया था, तब थे; घायल के मौन होते ही सब लोग उसकी साँसों से जागृत् बँगले के शरीर से स्वप्न की तरह अदृश्य हो गए। घबराया हुआ युवक रास्ते पर आकर खड़ा हुआ। एक खाली ताँगा सवारी छोड़कर कार्लटन होटल से निकला। कुछ हाल न कहकर युवक ने ताँगा बुला लिया। बँगले जाकर ताँगेवाला ज़ख्मी को देखते ही बिगड़कर बोला—"आप हमें फँसाना चाहते हैं? यह रास्ते भर को भी तो न होगा!" कहकर उसने अपना ताँगा बढ़ाया। युवक को काठ मार गया। कुछ देर खड़ा कवियों के स्वर्गतुल्य, अप्सराओं के नूपुरों से मुखर, इस मनोहर संसार को भावना की अचपल दृष्टि से देखता रहा, फिर घायल के पास गया। देखा, सब खेल खत्म हो चुका है। साँस देखी, नाड़ी देखी, कहीं से भी उसके अस्तित्व का प्रमाण नहीं मिल रहा है। सूख गया। सिर्फ़ उसका नौकर मालिक की आज्ञा-पूर्ति के लिये मुस्तैद उसकी तरफ़ देख रहा था। हताश होकर युवक कुर्सी पर बैठ गया। एक चिट्ठी लिखकर नौकर से 'वसंतावास' दे आने के लिये कहा। नौकर चिट्ठी लेकर गया, युवक थाने की ओर चला।
३
रिपोर्ट अधूरी और ऐसी थी कि साथ-साथ दारोग़ाजी की तहक़ीक़ात की ज़रूरत हुई। वह युवक के साथ हो लिये। बँगले पहुँचकर देखा,