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चतुरी चमार



२९

एक लाश पलंग पर पड़ी है; सीने में दोनों तरफ़ से छुरे की तरह कोई अस्त्र भोंका गया है।

पूरी मुस्तैदी से गोमती-तट, मृतक के लेटने की विधि आदि की परीक्षा कर, निर्भय, निश्चिन्त होकर दारोग़ाजी कुर्सी पर बैठ गये, और गंभीर प्रभावोत्पादक स्वर से पुनः पूछने और बयान लिखने लगे।

"आपने इसे कहाँ देखा है?"

"एक बार कह चुका हूँ।"

"आप वहाँ कैसे गए?

"मुझसे वकील बाबू महेश्वरीप्रसाद ने कहा वह उस तरफ़वाले बँगले में रहते हैं।"

थानेदार साहब ने बाबू महेश्वरीप्रसाद को कारण बताकर ले आने के लिये एक कान्स्टेबिल को भेज दिया।

"फिर आपने क्या किया?"

"मैं इसे उठा लाया, यह निकाल लेने के लिये मुझे देखते ही पुकारकर कहने लगा था।"

"आप कैसे ले आए?"

"बाहों पर उठाकर।"

दारोग़ाजी ने एक बार युवक के पुष्ट शरीर की ओर देखा।

"फिर आपने क्या किया?"

"इसके कहने पर कपड़े उतारे, फिर पूछ-पूछकर बयान लिखने लगा।"

"दिखलाइए वह काग़ज़।"

युवक ने काग़ज़ दे दिया। पढ़कर थानेदार साहब जामे से बाहर हो गये। डाँटकर कहा—यह कोई बयान है? नाम है किरिश्नाचरन (कृष्णचरण), बस, बाप का नाम?"

"क़ौम?"

"क़ौम के लिये मैं पूछ रहा था, पर वह बोल नहीं सका।"