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चतुरी चमार



३१


"मुझे नहीं मालूम।"

दारोग़ाजी ने गम्भीर होकर पूछा—"तो फिर आपको क्या मालूम है?"

युवक क्रोध से चुप हो गया। दारोग़ाजी ने पूछा—"आपने फिर क्या किया?"

युवक ने सोचा—"अब मोटरवाली बात कहता हूँ, तो सम्भव है, मोटर-मालिक वकील साहब की तरह उस समय मौजूद न रहें।" फिर कहा—"फिर अस्पताल ले जाने के लिये रास्ते से एक ताँगा ले आया, पर ताँगेवाले ने ले जाना मंज़ूर न किया।"

"वह कितने नंबर का ताँगा था? "जमकर दारोग़ाजी ने पूछा।

"मुझे मालूम तो था नहीं कि आप नंबर पूछेंगे।"

दारोग़ाजी ग़ौर करने लगे। युवक दोषी है, ऐसा प्रमाण तो न था, पर निर्दोष है, ऐसा भी प्रमाण न था,बल्कि एक झूठ साबित हो चुकी है। ऐसी हालत में सन्देह को ही श्रेय देना उचित है। हत्या का एक विश्वसनीय कारण पुलिस को दिखाना पड़ता है, यदि प्रमाण अप्राप्त रह गया।

थाने में रिपोर्ट लिखाने के समय युवक नाम-धाम आदि लिखा चुका था, पर इस समय दारोग़ाजी ने फिर उससे कुछ ऐसे प्रश्न किए। वह कौन है, इस प्रश्न का बहुत ही संक्षिप्त उत्तर सभ्यता के विचार से ह्रस्व स्वरों में उसने दिया। अतः उसकी स्थिति का भी कोई प्रभाव थानेदार साहब पर न पड़ा। फिर पढ़े-लिखे युवकों द्वारा हुई हत्या के कारण है भी—कुछ ऐसा इसमें भी रहस्य सम्भव है।

सोच-विचारकर दारोग़ाजी पंचनामे की कार्रवाई पूरी करने लगे! इस सम्बन्ध से अपने को बिल्कुल अनभिज्ञ बतलानेवाले कुछ पंच भी मिले। इसी समय सिपाहियों की ओर थानेदार साहब ने एक इशारा किया। सिपाही युवक को चारों ओर से घेरे हुए खड़े थे। इशारा पाकर बाँध लिया। पंच डरे हुए, काम के बहाने, चलने को हुए। लाश