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निराला
जासूसों ने राजा साहब को समझाया कि शक्तिपुर के बाग़ी विश्वम्भर ने से मिले हैं, उन्होंने उसे बेवक़ूफ़ जानकर महाराज का उससे अपमान कराया। विश्वम्भर सरकार की नौकरी का ख़्याल छोड़कर बाग़ियों से मिला है। जासूसों ने इस प्रकार अपनी रोटियों का प्रबन्ध किया।
कुछ दिनों बाद, घाव पुरने पर, स्टेट की तरफ़ से विश्वम्भर को आज्ञा-पत्र मिला—"अब तुम्हारी नौकरी की सरकार को आवश्यकता नहीं रही।"
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बारह साल तक मकड़े की तरह शब्दों का जाल बुनता हुआ मैं मक्खियाँ मारता रहा। मुझे यह ख़याल था कि मैं साहित्य की रक्षा के लिये चक्रब्यूह तैयार कर रहा हूँ, इससे उमका निवेश भी सुन्दर होगा और उसकी शक्ति का संचालन भी ठीक-ठीक। पर लोगों को अपने फँस जाने का डर होता था, इसलिये इसका फल उल्टा हुआ। जब मैं उन्हें साहित्य के स्वर्ग ले चलने की बातें कहता था, तब वे अपने मरने की बातें सोचते थे; यह भ्रम था। इसीलिये मेरी क़द्र नहीं हुई। मुझे बराबर पेट के लाले रहे। पर फ़ाक़मस्ती में भी मैं परियों के ख़्वाब देखता रहा—इस तरह अपनी तरफ़ से मैं जितना लोगों को ऊँचा उठानेकी कोशिश करता गया, लोग उतना मुझे उतारने पर तुले रहे, और चूँकि मैं साहित्य को नरक से स्वर्ग बना रहा था, इसलिए मेरी दुनिया भी मुझसे दूर होती गई; अब मौत से-जैसे दूसरी दुनिया में जाकर मैं उसे लाश की तरह देखता होऊँ। "दूबर होत नहीं कबहूँ पकवान के विप्र, मसान के कूकर" की सार्थकता मैंने दूसरे मित्रों में देखी, जिनकी निगाह दूसरों की दुनिया की