पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/१००

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पूसरा हिस्सा दीवान साहब के मना करने से उन लोगों को लाचार हो उसी जगह अपने दाम पर मुतद रहना पडा । | अन दीवाने साहब वहां से रवाना हुए और बहुत जल्द कुवेरसिंह मेनापति के मकान पर जा पहुंचे जो इनके यहा से योडी ही दूर पर एक सुन्दर सजे हुए मकान में बड़े ठाठ के मय रहता था । | देवान साक्ष्य को विश्वास था कि इस समय सेनापति अपने ऐश मदन ३३ प्रानन्द से सौता होगा, वहीं से बुलवाना पड़ेगा, मगर नहीं, वजे पर पहुंचते ही पहने वालों में पूछने पर मालूम हुआ कि सेनापति साइन अभी तक अपने कमरे में बैठे हैं, बल्कि कोतवाल साहब भी इस समय उन्हीं के पास हैं ।। अग्निदत्त यह सोचता हुआ ऊपर चढ़ गया कि आधी रात के समय कोतवाल यह य आया है। ग्नौर ये दोनों इस समय या सलाह विचार कर रहे हैं। कमरे में पहुंचते ही देखा कि सिर्फ वे ही दोनों एक गद्दी पर तकिये के नारे लेटे हुए कुछ बातें कर रहे हैं जो यकायक दीवान सत्र को अन्दर चैर रखते देख उठ खड़े हुए श्रीर सलाम करने के बाद ऐनापति साहब ने ताज्जुब में श्राफर पूछा :| यह आधी रात के समय अपि घर से क्यों निकले है?” दोन० 1 ऐसा ही भीक आ पड़ा, लाचार सलाह करने के लिए आप दोनों से मिलने की जरूरत हुई । कोत० ] अाइए ईठिए, कहिए कुशल तो हैं ? दीवान• | | कुशल ही कुशल हैं मगर कई लुटकों ने जी बेचैन " कर रखा है। सेनापति० । सो बया; कुछ कहिये भी तो है। दीवान० { है कहता हैं, इसीलिए तो प्राया हूँ। मगर पहिले ( फोतया फो तरफ देर कर ) नाप त कहिए, इस समय यहा ६) १६ ।