पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/९९

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चन्द्रकान्ता सन्तति
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चन्द्रकान्ती सन्तति चौथा बयान | हम ऊपर लिख आये हैं कि माधवी के यहा तीन श्रादमी अर्थात् दोकान ग्निदत्त, कुवेरसिंह सेनापति, और धर्मसिंह कोतवाल मुखिया थे और ये ही तीनों मिल कर माधवी के राज्य का आनन्द लेते थे । इन तीनों में अग्निदत्त का दिन बहुत मजे में कटता था क्योंकि एक तो वह दिवान के मर्तवे पर था, दूसरे माधवी ऐसी खूबसूरत औरत उसे मिली थी 1 कुत्रेसिंह श्री धर्मसिंह इसके दिली दोस्त थे मगर कभी कभी ने उन दोनों को माधवी का ध्यान श्री ज्ञाता तो चित्त की वृत्ति बदले जाती श्रीर जी में कहते कि 'अफसोम, माधवी मुझे न मिली !' | पहिले इन दोनों को यह खबर न थी कि माधवो कैसी है। बहुत कहने सुनने से एक दिन दीवान माहब ने इन दोनों को माधवी को देखने का मौका दिया था। उसी दिन से इन दोनों ही के जी में माधवी की सूरत चुनी गई थी और उसके बारे में बहुत कुछ सोचा करते थे । | ग्राज हम अाधी रात के ममय दोवान श्रग्निदत्त को अपने सुनसान कमरे में अकेले चारपाई पर लेटे किसी सोच में डूबे हुए देखते हैं । न मालूम वह क्या सोच रहा है या किस फिक्र में पड़ा हैं, ही एक टफे उनके मुँह से यह श्रीवाज जरूर निकली--कुछ समझ में नहीं थ्रातr | इसमें तो कोई सन्देह नहीं कि उसने अपना दिल खुश करने का कोई मामान वहा पैदा कर लिया। तो में ही बेफिक्र क्यों बैठ रहूँ ? सैर पहिले अपने दोस्तों से तो सलाह कर हैं। यह फहने के साथ ही वह चारपई से उठ चैटा शोर इमरे में धीरे घरे टहलने लगर, अाखिर उसने टी से लटकती हुई अपनी तलवार उतार लो र मकान के ना उतरे श्राप ।। | दवने पर बहुत से सिपाही पद रहे थे। दीन साहब को कई नान के लिए तैयार देउ वे ल। मैः सोय बनाने को तैयार हुए, मगर