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चन्द्रकान्ता सन्तति
 

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বাল্লা সক্সি पहिला० । नी नहीं, यह सन्देशा उसने मुझे दिया क्योंकि यही उसे दुःख दे रहा था । दूसर० } नहीं यह झुठ यौलता है । पहिला० { नहीं यह झूठा है, मैं ठीक ठीक कहता हूँ । कोत• ! अच्छा मुझे उस औरत के पास ले चलो, मैं खुद उससे पूछ दें कि कौन झूठा है और कौन सन्चा है। पहिला० । क्या अमी तक वह उसी जगई होगी १ दूसरा० १ जरूर वही होगी, यह बहाना करता है क्योंकि वहां जाने से झूठा साबित हो जायगा । पहिला० । ( अपने भाई की तरफ देख कर ) झुठा साबित होगा । अफसोस तो इतना ही है कि अन्य मुझे वहां का रास्ता भी याद नहीं ! दूसरा० । ( पहिले की तरफ देख कर ) श्राप रास्ता भूल गए हैं। न्या हुश्रा मुझे तो याद है, मैं जरूर आपको वहां ले चल कर झूठी साबित करूंगा ! ( कोतवाल साछ की तरफ देख फर ) चलिए में श्रापको वहां से चलता हूँ। कोत० | चलो ।। कोतवाल साहब तो खुद मैचैन हो रहे थे और चाहते थे कि जहाँ तक हो वहा चल्द पहुँच कर देखना चाहिए कि वह अौरत कैसी है जो मुझ पर प्रशिक हो मेरी तस्वीर सामने रख याद किया करती है । एक पिस्तौल भरी भराई कमर में रख उन दोनों भाइयों को साथ ले मकान के नीचे उतरे । उनको बाहर जाने के लिए मुस्तैद देख कई सिपाही साय चलने के लिए तैयार हुए। उन्होंने अपनी सवारी का घोड़ा मंगवाया और उस पर सवार हो सिर्फ अर्दली के दो सिपाहियों को साथ ले उन दोनों भाइयों के पीछे पीछे रवाना हुए। दो घण्टै बराबर चले जाने बाद एक छोटी सी पहाटी के नीचे पहुंचे थे दोनों भाई के शौर कोतवाल साद्य को घोड़े से नीचे उतरने के लिए कहा।