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चन्द्रकान्ता सन्तति
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६८ चन्द्रकान्ता सन्तति न कहता कि मैं खुश हूँ ! वह जरूर समझता कि कायदे के मुतात्रिक इन्हें मारना पड़ेगा, इसके बदले में कल्याणसिंह मरि जायगा, श्रीर इसके अतिरिक्त वीरेन्द्रसिंह के ऐयार लोग ऐयारी के कायदे को तिज जिलि देकर बेहोशी की दवा के बदले जहर का बर्तास करेंगे और एक ही सप्ताह में रोहतीसगढ़ को चौपट कर डालेगे ! इस तहखाने के दारोगा को जरूर इस बात का रङ्ग होता । | राजा की बातें सुन कर च्योतिषीजी की अखेि खुल गई । उन्होंने मन में अपनी भूल कबूल की और गर्दन नीची करके कुछ सोचने लगे । उसी समय राजा ने पुकार कर अपने ग्रामियों से कहा, “इस नकली दारोगी को भी गिरफ्तार कर लो और अच्छी तरह जमश्रिी कि यह यहाँ का दारोगा है या वीरेन्द्रसिंह का कोई ऐयार !” । बात की बात में दारोगा साह्य की मुश्के वॉध ली गई और राजा ने दो आदमियों को गरम पानी लाने का हुक्म दिया 1 नौकरों ने यह समझ कर कि यह पानी गरम करने में देर होगी ऊपर दीवानरसाने में हर दम गरम पानी मौजूद रहता है वहाँ से लाना उत्तम होगा, महाराज से अाशा वाही । महाराज ने इसको पसन्द करके ऊपर दीवानेखाने से पानी लाने का हुक्म दिया । दो नौकर गर्म पानी लाने के लिए दौड़े मगर तुरत लौट आ कर बोले, ऊपर जाने का रास्ता तो वन्द हो गया है। महा० । सो क्या ! रास्ता कैसे बन्द हो सकता है ? नीकर० । क्या जानें ऐसा क्यों हुआ । मा० } ऐसा कभी नहीं हो सकता 1 ( ताली दिपा कर ) देखो यह शाली मेरे पास मौजूद है, इस ताली बिना कोई क्योंकर उन दर्जा की नन्द र मन्ना है ? नरः । जे , में कुछ नही अर्ज कर सकता, सकर चल कर देश में !