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चौथा हिस्सा
 

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चौथा हिस्सा राजा ने स्वयं जा कर देखा ते ऊपर जाने का रास्ता अर्थात् दर्वाजा बन्द पाया । ताज्जुब हुआ और सोचने लगा कि दुर्वाजा किसने बन्द किया, ली तो मेरे पास थी । अाखिर दाज्ञा खोलने के लिये ताली लाई मगर ताल; ने बुला । अाज तक इसी ताली से अराचः इसे तहपाने में आने जाने का दवाजा खोला जाता था, लेकिन इस समय ताली कुछ काम नहीं करती । यह अनोखी बात जो जो दिग्विजयसिंह झे पाने में भी कमी न आई थी आज यशामक पैदा हो गई । राजा के ताज्जुब का कोई रदद न रहा । उस तहखाने में श्रौर भी बहुत से वजे उस ताली से खुत्ता करने थे । दिग्विजयहि नै ताली ठोंक पीट और एक इस दरवाजे में लगाई, मगर वह भी न खुला | राजा की आँखों में श्राद्ध भर शाया और यकायक उसके मुंह से यह ग्रीवाज निकला, “अब इस तहलाने का और हम लोगों की उम्र पूरी हो गई !” । राजा दिग्विजयसिंद्द धराया हुआ चारो तरफ घूमती और घड़ी घडी दबाजो र ताली लगता था । इतने ही मैं उस काले रंग की भयानक भूति हे मुँह में से किसके सामने एक औरत वलि दी जा चुकी थी एक तरह को अवाज निकलने लगी । यह भी एक नई बात थी । दिग्विजहि श्रीर जित श्रादमी व १ सय दर गये और उसी तरफ देखने लगे। पता । रजा उस नृति के पास जाकर खड़ा हो गया और गौर से सुनने लगा फि का प्राचीन भाती हैं। थोड़ी देर तक यह प्रविन समझ में न अाई, इसके बाद बहु सुनाई पा-तेरी तालो केवल बारह नाबर की कोठडी की साल मग ! जहा तत्र जल्दी हो सके किशोरी को इसमें बुन्द कर दें नहीं तो रुम की जान गुफ्त में अपनी ! २८ नई अदभुत र अनोखी इति दे सुनकर राजा झा कलैजा दलने लगा म उनकी नुम में कुछ न छाया कि यह नूरत चकर चली । यान तक कभी ऐसी बात नहीं हुई थी। सैफई अ टर्म इसके