पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/४४

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पहिला हिस्सा
 

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पहिला हिस्सा झारों के आगे अन्धेरा छा गया, बिना कुछ सोचे विचारे उस औरत पर | वरछो को बार किया। शौरत ने बडी फुर्ती से ढाल पर रोका और इस कर कहा, और जो कुछ हौसला रखता हो ला !' घण्टे भर तक दोनों में बरछी की लडाई हुई । इस समय अगर कोई | इम फन का उस्ताद होता तो उस औरत की फुती देख बेशक खुश हो जाता श्रौर ‘वाह वाह' या 'शावाश' कहे विना न रहता । अाखिर उस औरत की बरछी जिसका फल जहर से बुझाया हुआ था भीमसेन की नाव में लगी जिसके लगते ही तमाम बदन में जहर फैल गया और वह बदहवास होकर जमीन पर गिर पडा । नौवां बयान भीमसेन के साथियों ने बहुत खोजा मगर भीमसेन का पता न लगा, लाचार कुछ त जाते जाते लौट आये और उस समय महाराज शिवदत्त के पास जाकर अर्ज किया कि ग्राञ शिकार खेलने के लिये कुमार जल में गये थे, एक बनैले सूअर के पीछे घोडा फेंकते हुवे न मालूम काटा चले गवे, बहुत तजश किया मगर पता न लेगा ।। अपने लड़के के गायब होने का हवाले सुन महाराज शिवदत्त बहुत घय गवे ! थोडी देर तक तो उन लोगों पर खफा होते रहे जो भमसेन • के साथ थे, शातिर कई जन्मों को बुला कर भीमसेन का पता लगाने के लिए चारो तरफ रवाना किया और ऐयारों को भी हर तरह का ताकद की मगर तन दिन बीत जाने पर भी भीमसेन का पता न लगा । एक दिन लडके की जुदाई से व्याकुल हो अपने कमरे में अकेले बैठे तरह तरह की बात सोच रहे थे कि एक खास खिदमतगार ने यहां पहुंच अपने पैर की धमक से उन्हें चौका दिया । जब वे उस खिदमतगार मी तरफ देखने लगे उसने एक लिफाफा दिखा कर कहा, "धोबदार ने यह लिफाफा हुजूर में देने के लिये मुझे सपा है । उसी चवदार की जुबानी