पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/५३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
चन्द्रकान्ता सन्तति
६०
 

________________

हा शिवदत्तगढ़ के बाहर होते होते इन लोगों ने पता लग्न हो लिया कि | भीमसेन किसी ऐयार के पजे में पड़ गया है ।। शिवदत्तगढ़ के बाहर हो सीधे चुनार का रास्ता लिया । दूसरे दिन शाम को जब चुनार पन्द्रह कोस बाकी रह गयी सामने से एक सवार घौरा फेंकता इ इसी तरफ आता दिखाई पड़ा | पास ग्राने पर भैरोसिंह ने पहिचाना कि शिवदत्त का लड़का भीमसेन है । भीमसेन ने इन ऐयारों के पास पहुंच कर घोडा रोका और हँस कर भैरोसिंह की तरफ देखा जिसे वह बग्बूवी पहिचानता था । भैरो० } क्या साह्ने अापको छुट्टी मिली १ ( अपने साथियों को तरफ देख कर ) महाराज शिदत्त के पुत्र कुमार भीमसेन यही हैं। भीम० | श्राप ही लोगों की रिहाई पर मेरी छुट्टी बदी थी, श्राप लोग चले ग्राये तो मैं क्या रोका जाता है भैरो० { मारे किस साथी ने श्रापको गिरफ्तार किया ? भीम ० ( सो मुझे मान्म, नहा शिकार खेलते समय घोड़े पर सवार एक श्रीरत ने पत्र कर जेबाजी में जराले नेजे से मुझे जख्मी क्रिया, जय म नैण हो गया मुश्के छाध एक जोह में ले गई और इलाज करके गर्म दिया, झगे का एल अाप जानते ही हैं, मुझे यह न मालूम या कि बदरत न थी मगर इसमें शक नहीं कि वह थी औरत ही । ३० । पैर व ग्राप अपने घर जाये मगर देखिये अापके पिता में व्यर्थ हम लोगों से वैर बाथै रक्ा है। जब राजकुमार यारेन्द्रनिह के दी ह गये ये उभ वक्त हमारे महाराज सुरेन्द्रसिंह ने उन्हें बहुत तरह से सम, कर । कि श्राप में लोगों से बेर छोः चुनार न रहे, हमें चुनार । पी गो ग्राप फेर देते हैं। उस समय तो हजरत को फकारी सूझो थी, योग(म्पस की धुन में प्राग को जगहू बुद्धि के ब्रह्माण्ड में चढ़ा ले गये थे, हैन र पिर गुदगुदी मालम होने लगी । खैर हम क्या, उनकी श्रिमत में उन्ग भर दु । ही बंदा हे तो कोई क्या करे, इदना नहीं