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३। * : 15 चन्द्रकान्ता सन्तति दूसरा हिस्सा पहिला बयान घण्टा भर दिन बाकी है । किशोरी अपने उसी वर्ग में fमराफी कुछ हाल ऊपर लिख चुके हैं कमरे की छत पर सात शाट सखियों के बीच | में उदास तकिये के सहारे चैटी असमान की तरफ देख रही है । मुगन्धित इवा के झोंके उसे बुरा किया चाहते हैं मगर वह अपनी धुन में ऐसी उलझी हुई है कि दीन दुनिया की खबर नहीं है | असमान पर पमि की तरफ लालिमा छाई हुई है, श्याम रंग के बादल ऊपर की तरफः उद रहे हैं जिनमें तरह तरह को सूरतें बात की बात में पैदा होती और देखते देखते बदल कर मिट जाती हैं ! अभी यह वादन्न का टुकड़ा एट पर्वत की तरह दिखाई देता था; भी उसके ऊपर शेर की सूरत नजर आने लगी, लेजिये शेर की गर्दन इतनी बढ़ी कि सपा ऊँट की शन्न बन गया श्री लद्दमे भर में ही का रूप धर लम्बी दुइ दिने लगा, उसी के पीछे हाथ में बन्फ लिये एक सिपाही की शक्ल नजर आई लेकिन वह वन्दुक छोड़ने के पहले खुद ही धूश हो कर फैल यः ।।