पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/९

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चन्द्रकान्ता सन्तति
 

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च द्रकान्ता सन्तति तुम प्रतापी राजा सुरेन्द्रसिंह * के लड़के ही इसलिए तुम्हें पहले ही समझा देना मुनासिव है जिसमें किसी तरह का दुःख न हो । इन्द्र० । महाराज में कैसे जानें गई कि यह श्रापका शेर है। ऐसा ही है तो शिकार न पैलूगा । बाथा ० । नहीं नहीं, तुम शिकार खेली, मगर मेरे शेरों को मत मारो । इन्द० | मगर यह कैसे मालूम हो कि फलाना शेर श्रीपका है। बाबा० । टेप में अपने शेरों को बुलाता हूँ, पहिचान ले । बाबाजी ने शंख बजाया । भारी शख की विजि चारो तरफ जंगल में गुज गई और हर तरफ से गुर्राहट की आवाज आने लगी । थोडी हो देर में इधर उधर से दौडते हुए पॉच शेर श्री श्री पहुचे । ये चारो दिलावर शौर बहादुर ये, अगर कोई दूसरा होता तो डर से उसकी जान निकल जाती । इन्द्रजीतसिह और आनन्दसिंह के घोड़े शेरों को देख उछनने कूदने लगे मगर रेशम को मजबूत बागडोर से बंधे हुए थे इससे माग न मके } इन शेरों ने श्राकर बडी उधम मचाई, इन्द्रजातसिंह वगैह को दे गरजने कूदने अौर उछलने लगे, मगर बाबाजी के डॉटते ही मी ठण्डे रो सिर नीचा कर भइ बकरी की तरह खड़े हो गए। यत्रि० । दे। इन शेरी को पहिचान लो, अभी दो चार शौर है, माग होता है उन्होंने शर ीं अविाज नहीं सुनी । खेर अभी तो * गं जगत् मे हैं, उन बाकी शेरों को भी दिखला दूंगा, कल भर • । गदा श्रीर त्रुट क्यो । | भो० } फिर अपने मुलत कहाँ होगी १ अापकी धूनी किस जग गई है। | जावा० | मुझे तो यही जग आनन्द की मालूम होती है, के : ना सुना होगा । | गाध माग भूल गए, वरिन्द्रसिद्द की जगह सुरेन्द्रसिंह का ना