पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/९०

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दूसरा हिस्सा
 

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दूसरा हिस्सा | मै बातें कर रही थी, हम लोगों को हट जाने के लिए कहा, फिर न | मालुम क्या हुश्रा प्रौर फहाँ चली गई है । | कमला० । बस अब मैं समझ गई, तुम लोगों ने धोखा खाया, | मैं तो श्री चल ही आती है। हाय, यह क्या हुश्री ! वेशक दुश्मन | अपना काम कर गए और हम लोगों को ग्राफ्त में ले गए । हाय प्र में क्या करू, कहा जाऊँ, किससे पूछे कि में प्यारी किशोरी को | फौन ले गया ! दूसरा बयान किशोरी खुशी खुशी रथ पर सवार हुई और रय तेजी से जाने लगा। वह कमरा भी उनके साथ था, इन्द्रजीत सिंह के विषय में तरह तरह की बातें कह कई फर उसका दिल बह्लाती जाती थी । किशोरी भी बड़े प्रेम से उन बात को सुनने में लीन हो रही थी। कभी सोचती कि जब इन्हें | sीत सिंह के सामने जाऊँगी तो किस तरह पड़ी होऊँगा, क्या इँ गी १ | अगर ये पूछ बैठेंगे कि तुम्हें किसने बुलाया तो क्या जवाब देंगो १ नहीं | नहीं, वे ऐसा कभी न पृढ़ेंगे कि मुझे पर प्रेम रखते हैं, मगर | उनके घर की औरतें मुझे देख कर अपने दिल में क्या कहें! ! वे जरूर समझे कि किशोरी बडी देहया औरत है ! इसे अपनी इजत श्रौर प्रतिष्ठा का कुछ भी ध्यान नहीं है । इाय, उस समय वो मेरी बड़ी ही दुर्गति होगी, जिंदगी जलाल हो जायगी, किसी को मुंह न दिखा सकेंगी। ऐसे ही ऐमी बात को सोचती, कभी खुस होतो कभी इस तरह के समझे चूॐ चल पड़ने पर अपसोस करती थी । कृष्ण पक्ष की सप्तमी | थी, 'धेरै हो में रथ के वैल चरबर दौड़े जा रहे थे। चारों तरफ से घेर फर चलने वाले सवारों के घी के टपों की बढ़ती हुई आवाज दूर दूर तक फैल रही थी । किशोरी ने पूछा, “क्यूँ कमला, या लीटियाँ भो