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चन्द्रगुप्त
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उसे अपनी रणनीति का प्रधान अंग मानते हैं। निरीह साधारण प्रजा को लूटना, गाँवो को जलाना, उनके भीषण परन्तु साधारण कार्य्य हैं।
सिंह॰—युद्ध-सीमा के पार के लोगों को भिन्न दुर्गों में एकत्र होने की आज्ञा प्रचारित हो गई है। जो होगा, देखा जायगा।
चन्द्र॰—पर एक बात सदैव ध्यान में रखनी होगी।
सिंह॰—क्या?
चन्द्र०—यही, कि हमे आक्रमणकारी यवनों को यहाँ से हटाना है, और उन्हें जिस प्रकार हो, भारतीय सीमा के बाहर करना है। इसलिए शत्रु की नीति से युद्ध करना होगा।
सिंह॰—सेनापति की सब आज्ञाएँ मानी जायँगी, चलिये!
[सब का प्रस्थान]