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ने भी महाराज पुरु से अपना बदला लेने के लिए सिकन्दर के लिए भारत का द्वार मुक्त कर दिया था। उन्हीं ग्रीक ग्रंथकारों के द्वारा यह पता चलता है कि चन्द्रगुप्त ने एक सप्ताह भी अपने को परमुखापेक्षी नही बना रक्खा और वह क्रुद्ध होकर वहाँ से चला आया । Justinus लिखता है कि उसने अपनी असहनशीलता के कारण सिकन्दर को असन्तुष्ट किया । वह सिकन्दर का पूरा विरोधी बन गया।

For having Offended Alexander by his impertinent language he was ordered to be put to death,and escaped only by fight. (JUSTINUS )

In history of A.S Literature.

सिकन्दर और चन्द्रगुप्त पंजाब में

सिकन्दर ने तक्षशिलाधीश की सहायता से जेहलम को पार करके पोरस के साथ युद्ध किया। उस युद्ध मे क्षत्रिय महाराज ( पर्वतेश्वर ) पुरु किस तरह लड़े और वह कैसा भयंकर युद्ध हुआ, यह केवल इससे ज्ञात होता है कि स्वयं जगद्विजयी सिकन्दर को कहना पड़ा-“आज हमको अपनी बराबरी का भीमपराक्रम शत्रु मिला और यूनानियो को तुल्य-वल से आज ही युद्ध करना पड़ा।" इतना ही नही, सिकन्दर का प्रसिद्ध अश्व ‘बूका फेलस' इसी युद्ध में हत हुआ और सिकन्दर भी स्वय आहत हुआ।

यह अनिश्चित है कि सिकन्दर को मगध पर आक्रमण करने को उत्तेजित करने के लिए ही चन्द्रगुप्त उसके पास गया था, अथवा ग्रीक-युद्ध की शिक्षा-पद्धति सीखने के लिए वहाँ गया था। उसने सिकन्दर मे तक्षशिला में अवश्य भेट की । यद्यपि उसका कोई कार्य वहाँ नहीं हुआ, पर उसे ग्रीकवाहिनी-रणचर्य्या अवश्य ज्ञात हुई, जिससे कि उसने पार्वतीय सेना से मगध राज्य का ध्वंस किया ।

क्रमश वितस्ना चन्द्रभागा, इरावती के प्रदेशो को विजय करता