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हुआ सिकन्दर विपाशा-तट तक आया और फिर मगध-राज्य का प्रचण्ड प्रताप सुनकर उसने दिग्विजय की इच्छा को त्याग दिया और ३२५ ई० पू० मे फिलिप नामक पुरुष को क्षत्रप बनाकर आप काबुल की ओर गया। दो वर्ष के बीच में चन्द्रगुप्त भी उसी प्रान्त मे घूमता रहा और जब वह सिकन्दर का विरोधी बन गया था, तो उसी ने पार्वत्य जातियो को सिकन्दर से लड़ने के लिए उत्तेजित किया और जिनके कारण सिकन्दर को इरावती से पाटल तक पहुँचने में दस मास समय लग गया और इस बीच में इन आक्रमणकारियों से सिकन्दर की बहुत क्षति हुई। इस मार्ग में सिकन्दर को मालव-जाति से युद्ध करने मे बड़ी हानि उठानी पड़ी। एक दुर्ग के युद्ध में तो उसे ऐसा अस्त्राघात मिला कि वह महीनो तक कड़ी बीमारी झेलता रहा। जल-मार्ग से जाने वाले सिपाहियों को निश्चय हो गया था कि 'सिकन्दर मर गया'। किसी-किसी का मत है कि सिकन्दर की मृत्यु का कारण यही घाव था ।

सिकन्दर भारतवर्ष लूटने आया, पर जाते समय उसकी यह अवस्था हुई कि अर्थाभाव से अपने सेक्रेटरी यू डोमिनिस से उसने कुछ द्रव्य माँगा और न पाने पर इसका कैम्प फुंकवा दिया। सिकन्दर के भारतवर्ष में रहने ही के समय में चन्द्रगुप्त-द्वारा प्रचारित सिकन्दर-द्रोह पूर्णरूप से फैल गया था और इसी समय कुछ पार्वत्य राजा चन्द्रगुप्त के विशेष अनुगत हो गये थे । उनको रण-चतुर बनाकर चन्द्रगुप्त ने एक अच्छी शिक्षित सेना प्रस्तुत कर ली थी और जिसकी परीक्षा प्रथमत ग्रीक सैनिको ने ली। इसी गडबड मे फिलिप मारा गया*और उस प्रदेश के लोग पूर्णरूप से स्वतन्त्र बन गये । चन्द्रगुप्त को पार्वतीय सैनिको से बड़ी सहायता मिली और वे उसके मित्र बन गये । विदेशी शत्रुओ के साथ भारतवासियो का युद्ध देखकर चन्द्रगुप्त एक
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  • सिकन्दर के चले जाने पर इसी फिलिप ने षड्यन्त्र करके पोरस को

मरवा डाला, जिससे विगड कर उसकी हत्या हुई ।