पृष्ठ:चाँदी की डिबिया.djvu/१५०

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चाँदी की डिबिया
[ अड़्क २
 

बार्थिविक

पलंग पर चले गये? कौन जानता है तुम कहां चले गये मुझे तुम्हारे ऊपर अब विश्वास नहीं रहा। मुझे क्या पता कि तुम ज़मीन पर पड़ रहे होगे।

जैक

[ बिगड़ कर ]

ज़मीन पर नहीं, मैं----

बार्थिविक

[ सोफ़ा पर बैठ कर ]

इसकी किसे परवाह है कि तुम कहां सोये थे? उस वक्त क्या होगा जब वह कह देगा......डूब मरने की बात होगी!

मिसेज़ बार्थिविक

क्या?

[ सन्नाटा ]

बात क्या हुई, बोलते क्यों नहीं?

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