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पृष्ठ:चाँदी की डिबिया.djvu/१४९

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दृश्य २ ]
चाँदी की डिबिया
 

बार्थिविक

[ उसकी तरफ़ मुड़ कर ]

नहीं तुम! अजी---तुम---तुम कुछ जानती नहीं।

[ तेज़ आवाज़ से ]

आखिर! वह रोपर कहां मर गया! अगर वह इस दलदल से निकलने की कोई राह निकाल दे, तो मैं जानूँ कि वह किसी काम का आदमी है! मैं बदकर कहता हूँ कि इससे निकलने का अब कोई रास्ता नहीं है। मुझे तो कुछ सूझता नहीं।

जैक

इधर सुनिये, अब्बाजान को क्यों दिक करती हो? मैं केवल इतना ही कह सकता हूँ कि मैं थक कर बेदम हो गया था, और मुझे इसके सिवा कुछ याद नहीं है कि मैं घर आया।

[ बहुत मंद स्वर में ]

और रोज़ की तरह पलंग पर जाकर सो रहा।

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