पृष्ठ:चिंतामणि दूसरा भाग.pdf/१०

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चिन्तामणि

काव्य में प्राकृतिक दृश्य

'दृश्य' शब्द के अन्तर्गत केवल नेत्रों के विषय का ही नहीं अन्य ज्ञानेन्द्रियों के विषयों (जैसे शब्द, गन्ध, रस) का भी ग्रहण समझना चाहिए। “महकती हुई मञ्जरियो से लदी और वायु के झकोरों से हिलती हुई आम की डाली पर काली कोयल बैठी मधुर कूक सुना रही है” इस वाक्य मे यद्यपि रूप, शब्द और गन्ध तीनो का विवरण है, पर इसे एक दृश्य ही कहेंगे । बात यह है कि कल्पना द्वारा * अन्य विषयो की अपेक्षा नेत्री के विषयों का ही सबसे अधिक आन यन होता है, और सब विषय गौणरूप से आते हैं। बाह्य करणों के सब विषय अन्तःकरण में ‘चिन्न' रूप से प्रतिबिम्बित हो सकते हैं। इसी प्रतिबिम्ब को हम ‘दृश्य' कहते हैं।

यह तो स्पष्ट है कि प्रतिबिम्ब' या ‘दृश्य’ को ग्रहण अभिधा' द्वारा ही होता है। पर 'अभिधा' द्वारा ग्रहण एक ही प्रकार का नहीं होता । हमारे यहाँ आचार्यों ने सङ्केत-ग्रह के जाति, गुण, क्रिया और यदृच्छा ये चार विषय तो बताए, पर स्वयं सङ्केत-ग्रह के दो रूपों का विचार नहीं किया । अभिधा द्वारा ग्रहण दो प्रकार का होता है-- विम्ब-ग्रहण और अर्थ-ग्रहण । किसी ने कहा 'कमल' । अब इस ५ ‘कमल' पद का ग्रहण कोई इस प्रकार भी कर सकता है कि ललाई लिए हुए सफेद पंखड़ियो और नाल आदि के सहित एक फूल का चित्र अन्तःकरण में थोड़ी देर के लिए उपस्थित हो जाय ; और इस अकार भी कर सकता है कि कोई चित्र उपस्थित न हो, केवल पद का