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चिन्तामणि

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१२२ चिन्तामणि रहस्यवाद को लेकर जो ‘प्रतीकवादी' सम्प्रदाय योरप में खड़ा हुआ उसने परोक्षवाद (Occultistan ) का सहारा लिया। प्रतीक के रूप में गृहीत वस्तुओं में भावों के उद्गोधन की शक्ति कैसे सञ्चित हुई इसका वैज्ञानिक उत्तर यही होगा कि कुछ तो उन वस्तुओं के स्वरूपगत आकर्षण से, कुछ चिरपरिचित आरोप के दल से और कुछ वंशानुगत वासना की दीर्घ-परम्परा के प्रभाव से। पर रहस्यवादी इसका उत्तर दूसरे ढंग से देगे ।। वे कहेंगे कि हमारे मन का विस्तार घटता-बढ़ता रहता है और कभी-कभी कई एक मन सच्चरित होकर एक दूसरे में मिल जाते हैं। और इस प्रकार एक मन या एक शक्ति का उद्धाटन करते हैं। हमारी स्मृति का विस्तार भी ऐसे ही घटता-बढ़ता रहता है और उस महा स्मृति का, प्रकृति की स्मृति का, एक अङ्ग है । इस महा मन और मही स्मृति का अहान प्रतीकों द्वारा उसी प्रकार हो सकता है जिस प्रकार तात्रिकों के विविध चक्र यी यत्रों द्वारा देवताओ का । * इस प्रवृत्ति के अनुसार वे रचना में प्रवृत्त करनेवाली कवियों की प्रतिभा के जगने को वही दशा कहते हैं जिसे सूफी ‘हाल आना कहते हैं, जिसमें कुछ घड़ियों के लिए कवि की अन्तःसत्ती ईश्वरीय नार-सत्तर ( D11 11c Essence ) में मिल जाती है ।।

  • () That the borders of our mind are ever slufting, and that many minds can flow into one another, as it were, and crcate and reveal a single mind, a single cnergy

(2) Tliat the borders of our memories are as shufting, and that our memories are a part of one great memory, the memory of Nature lierseif (3) That thus grcat mind and great memory can be evoked hy symbols. IV. B. Yeats "Ideas of Good and Evil"