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चिन्तामणि

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चिन्तामणि प्रकार की मनमानी व्याख्याएँ हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं में समय-समय पर निकला करती हैं, जिनमें कहीं रहस्यवाद' और 'छायावाद' का कल्पित भेद समझाया जाता है , कहीं ‘छायावाद' ही के अर्थ में एक और 'विम्ववाद खड़ा करके दोनों का वस्तुवाद' ( १ ) के साथ विरोध कुछ शब्दाडम्वर के साथ दिखाया जाता है। ऐसे लोगो को ब्दों का प्रयोग करते समय शास्त्र-पक्ष का कुछ पता रखना या कम । से कम लगा लेना चाहिए। उन्हें समझना चाहिए कि ‘विम्व' 'छाया' का विल्कुल उलटा है और उसी अर्थ में आता है जिस अर्थ में उन्होंने ‘वस्तु' शब्द का प्रयोग किया है । जो मूल वस्तु प्रतिविम्व या छाया फेंकती है शास्त्रीय भापा मे वही विम्ब कहलाती है। जिस Realism [ रियलिज्म ] शब्द के लिए उन्होंने 'वस्तुवाद' शब्द बनाया है वह दार्शनिक भापी में 'बाह्यार्थवाद' कहलाता है। यहाँ पर हम यह बहुत स्पष्ट कह देना चाहते हैं कि हिन्दी-काव्यक्षेत्र में हम ‘रहस्यवाद' की भी एक शाखा चलने के विरोधी कभी नहीं हैं। हमारा कहना केवल यही है कि वह वाद के रूप में न चले ; स्वाभाविक रहस्यभावना का अश्रय लेकर चले । छायावाद का रूप रङ्ग बनाकर आजकल जो बहुत सी कविताएँ निकली हैं उनमें कुछ तो बहुत ही सुन्दर, स्वाभाविक यौर सच्ची रहस्यभावना लेकर चली है । कुछ वादग्रस्त और कृत्रिम है और अधिकांश कुछ भी नहीं हैं। शुद्ध काव्यदृष्टि का प्रचार हो जाने पर पूर्ण आशा है कि कूड़े-करकट के ढेर में से सच्ची स्वाभाविक रहस्यभावना अपना मार्ग अवश्य निकाल लेगी और हिन्दी-काव्यक्षेत्र की यह शाखा भी अपनी एक स्वतन्त्र भारतीय विभूति का प्रकाश करेगी । अनुकरण-युग का अन्त होगा, इसका हमे पक्का भरोसा है । ‘अभिन्यजनावाद' किस प्रसार व्यञ्जन-प्रणाली की वक्रता और विलक्षणता पर ही जोर देता है, यह हम देख चुके । यह हमारे यहाँ