पृष्ठ:चित्रशाला भाग 2.djvu/१०

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। स्वतंत्रता जानती; परंतु फिर भी एक पत्नी की हैसियत से वह मेरी पत्नी से लाख दर्जे अच्छी है। बिहारीलाल-अजी तोबा करो! कहाँ वह और कहाँ पापकी पत्नी, अाकाश-पाताल का अंतर है। परंतु हाँ, यह बात अवश्य है कि वह मुझे हर तरह से संतुष्ट रखती है। सुखदेव०-यह ! यही तो खास बात है। यद्यपि वह अशिक्षित है, परंतु फिर भी वह श्रापको संतुष्ट रखने की योग्यता रखती है। इसलिये वह एक सच्ची पत्नी है । जो पत्नी अपने पति को संतुष्ट नहीं रख सकती, वह चाहे जितनी सुशिक्षित हो, चाहे जितनी सुंदर हो, कभी सच्ची पत्नी कहलाने योग्य नहीं। बिहारीलाल-तो वह श्रापको संतुष्ट नहीं रखती? सुखदेव०-सारा रोना तो यही है। बिहारीलाल 'हूँ' कहकर चुप हो गए। थोड़ी देर के पश्चात् सिर उठाकर बोले-वैर भई, तुम कहते हो, तो मानना ही पड़ेगा। परंतु यह बड़े आश्चर्य की बात है। सुखदेव०-संसार में अनेक श्राश्चर्य की बातें होती हैं। (२) सुखदेवप्रसाद एक धनाढ्य पिता के पुत्र हैं। वयस अभी २३- २४ वर्ष की है । पढ़े-लिखे भी यथेष्ट हैं । बी० ए० तक शिक्षा पाई है। जिस वर्ष बी० ए० की अंतिम परीक्षा देनेवाले थे, उसी वर्ष असहयोग-धार में पड़ जाने के कारण बी० ए० पास न कर सके । घर में जमींदारी तथा लेन-देन का इतना काम था कि उन्हें कोई अन्य उद्योग-धंधा करने की आवश्यकता न थी, इसलिये उनके पिता ने भी उनके असहयोग पर कोई आपत्ति नहीं की। सुखदेवप्रसाद की एक महत्वाकांक्षा थी और वह यह थी कि उनका विवाह किसी सुशिक्षित कन्या से हो । उनके मित्रों द्वारा