बिहारीलाल-क्या कमी है?
सुखदेव०-यह कमी है बुबुद्धि की, तमीज की।
बिहारीलाल-जो स्त्री इतनी सुशिक्षित होगी, उसमें बुद्धि की कमी कैसे हो सकती है?
सुखदेव०-क्या यह बात आपकी समझ में नहीं थाती ?
विहारीलाल-कदापि नहीं।
सुखदेव०-या पढ़े-लिखे येवकूफ नहीं होते ?
बिहारीलाल-अरे, यों तो किसी-न-किसी बात में प्रत्येक मनुष्य बेवकूफ होता ही है, चाहे पढ़ा-लिखा हो, चाहे मूर्ख ।
सुखदेवग-तुम्हारी समझ में यह बात नहीं पा सस्ती।
बिहारीलाल-समझ में तो तय श्रावे, जब कोई बात हो ।
सुखदेव०-मैं पागल तो हूँ नहीं, जो विना यारा ही यक रहा हूँ।
बिहारीलाल-खैर, पागल तो मैं तुम्हें कह नहीं सकता; परंतु इतना अवश्य है कि तुम्हें भ्रम है।
सुखदेव०-खैर भई, भ्रम ही सही । तुमसे कुछ परामर्श, कुछ सहानुभूति पाने की इच्छा से मैंने तुम्हें अपना दुःख सुनाया ; तुम उलटे मुझी को टल्लू बनाने लगे । समय की बात है !
बिहारीलाल--समय क्या खाक है ? समय पड़े तुम्हारे दुश्मनों पर । यह सब तुम्हारी समझ का फेर है। मेरी पत्नी तो- उसकी भूरि-भूरि प्रशंसा करती है । जब बात पढ़ती है, तब यही कहती है कि सुखदेव बाबू की घरवानी हजार-दो हज़ार में एक औरत है।
सुखदेवप्रसाद विपादयुक्त हास्य के साथ बोले-बाहरवालों के लिये तो वह ऐसी ही है, पर घरवालों के लिये नहीं ; विशेषतः मेरे लिये तो रत्ती भर भी नहीं। एक अच्छी पत्नी में जो-जो बातें होनी चाहिए, वे उसमें एक भी नहीं है। मैं विश्वासपूर्वक कहता हूँ कि यद्यपि थापकी पत्नी बिलकुल निरक्षर है, गाना-बजाना भी नहीं