पृष्ठ:चित्रशाला भाग 2.djvu/१०४

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चित्रशाला - मंगाएँगे । सो उकुराइन, वह सब करा सकते हैं, गाँव के जमी- दार है। शोध ले युवती के प्रॉड फारफने लगे, अखि ताल हो गई। बोली-उस नुरक से कह देना कि जो उसके जी में प्रावे करे, मैं उस पर चूसूंगी भी नहीं । क्या कहूँ, मेरी ससुरालवाले सब जनने है, नहीं तो मज़ा चना देती । र, अब भी मेरे बाप-माई जीते है, बहुत अत्ति करेंगे, तो पछताएंगे, यह कह देना । और तू हरामजादी जो अब कभी मेरे घर आई, तो चैने से टॉर तोड़ दूंगी, इतना यादरम्झना। चौधराइन ठकुराइन,का चंडी-रूप देखकर डर गई । चुपचाप फान दवाए उबर चली गई। (2) युवती का शरीर इस अपमान से रात-दिन मना करता था। उसके शरीर में टस पिता का रक्त था जो बात, मान, प्रविष्टा और यावरू सम्मुख अपने प्राणों का, अपने मिय-से-प्रिय प्रारमीय के प्राणों भी कोई मूल्य न समन्ता था। वह जयं सोचती यी कि वह मेरा इतना अपमान करने के पश्चात् मी बा चैन की वंशी बजा रहा है, मेरे पास संदेश भेजता है, मुझे धमकाता है, तव टसका खून खोलने गता था | कमी की वह सोची थी,

  • स्वयं उससे मिलने के बहाने जाऊँ और उसनी हत्या कर

ढालूँ। परंतु जब वह यह सोचती थी कि बट इतनी पराधीन है कि उसके लिये ऐसा करना संभव नहीं। साथ ही यह भी सोचती यी कि यदि ऐन मौके पर उसकी सफलता न मिली और उसकी श्रावरु चली गई, सो फिर क्या रह जायगा ? इन्हीं सब बातों को सोचकर यह खून कसे बूट पीकर रह जाती थी।