चित्रशाला मौनी-अपने प्राणों से हाथ धोने से। रामसिंह इतना सुनते ही सन्नाटे में पा गया। भौजी देवर को मौन देखकर बोली-बस, चुप हो गए ? इसी विरते पर बढ़-बद. कर बातें मारते थे? रामसिंह का मुख-मंडल बजा से लाल हो गया। वह तुरंत छाती ऊँची कर बोला-चाहे लो हो, लाउँगा, मौजी ज़रूर लाऊंगा, बतायो । तुमसे होली खेलने की साध है, उसे पूरी करके छोड़ेगा, चाहे जो हो, चाहे प्राण ही क्यों न चले जायें मोजी-लायोगे? रामसिंह-हाँ लाऊँगा, लाऊँगा, बनायो। मौनी-अपने ज़मींदार का रक्त लायो । टसीसे मैं तुम्हारे साथ होली खेल गी। सुनने ही रामसिंह दो पग पीछे हट गया । उसका मुंह पीला पड़ गया। भौजी ठहाका मारकर बोली-धबड़ा गए ? मैं जानती थी, तुम नहीं ला सकोगे। रामसिंह वोला-यह तुम क्या कहती हो भौजी ? जमींदार ने हम्हारा क्या बिगाहा है? मौजी-क्या बिगाड़ा है, यह सुनना चाहते हो? सुनो ! यह कहकर भौजी ने सब वृत्तांत रामसिंह को सुना दिया । राम- सिंह सुनते ही सिंह की तरह गरज उठा । बोला-तुमने यह सद मैया से नहीं कहा ? मौजी- कहा था। रामसिंह-फिर ? मौजी–टन्हें श्रावरू से अधिक अपने प्राणों का भय है ? रामसिंह-यह वान है ?
पृष्ठ:चित्रशाला भाग 2.djvu/१०६
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