पृष्ठ:चित्रशाला भाग 2.djvu/११६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

चित्रशाला . दो । दास के चले जाने पर महाराज ने गानेवालियों की ओर हाय से इशारा किया। उन्होंने गाना बंद कर दिया, और उठकर चली गई। दास चला गया। थोड़ी देर में प्रवीणना श्राए। उन्होंने पहले वहुन ही मुककर महाराज को प्रणाम किया। फिर वह धीरे-धीरे समीप श्राफर सामने शिष्टता-पूर्वक खड़े हो गए। महाराज ने सुसकिराकर कहा-कहिए प्रवीणजी, क्या समा. 1 चार है? 1 प्रवीण- समाचार सब अच्छे हैं। इस समय एक कविता लिखी थी। जी न माना ; इच्छा हुई, इसी समय चलकर सुनाऊँ । श्रीमान् . का यह मनोरंजन का समय भी है। महाराज-हाँ-हाँ, कोई हर्ज नहीं । सुनाइए । प्रवीणजी ने कविता सुनाना शुरू किया। महारान चुपचाप सुनते रहे । कविता वास्तव में बहुत अच्छी चना थी । महाराज बहुत प्रसन्न हुए । सविता समाप्त हो जाने पर महाराज ने कहा- प्रवीएजी, श्राज्ञ तो आपने चमत्कार-पूर्ण कविता लिखी है। प्रवीणजी बोले-यह सब श्रीमान् का अनुग्रह है । लाख वृद्ध और शिथिल हो चला हूँ,पर अभी जो कुछ लिख-पढ़ सकता हूँ, उसकी टचर का लिखनेशना आस-पास के दो-चार राज्यों में न निकलेगा। महाराज ने कुछ मुसकिराकर कहा-इसमें क्या संदेह है। प्रबोग-परतु श्रीमान् ने मुझमें न जाने क्या त्रुटि देखी, जो मेरे होते हुए एक छोरे को रख लिया । क्या में श्रीमान की प्राज्ञा का पालन करने में असमर्थ समझा गया? महाराज नहीं प्रवीणजी, यह बात तो नहीं मैं तो देवन यह समझता हूँ कि गुण की कदर अवश्य होनी चाहिए। यदि ऐसा न होगा, तो गुणों का लोप होनायगा। क