पृष्ठ:चित्रशाला भाग 2.djvu/१३५

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३२७ पथ-निर्देश घनश्यामदास ने कहायहाँ तो "वही रफ्तार बेढंगी, जो पहले थी, सो अय भी है।" न सावन हरे, न भादों सूखे । गिनी रोटी, और नापा शोरवा । श्राप अपनी फाहिए? विश्वेश्वर-यहाँ तो जनाब, बस, रात-दिन फमाने की क्रिक रहती है। इन दिनों ग्रामदनी कुछ कम रही, इसलिये मजा जरा 1 किरकिरा रहा। , घ१०-इस महीने में एक हजार तो केवल एक ही केस में मिल गए, और आप क्या चाहते है ? विश्वेश्वर-एक हजार में यहाँ क्या होता है यार । जब तक महीन में ४-६ हजार न मिले, तय तक यहाँ पूरा नहीं पड़ता। धनश्याम---४-६ हजार! श्रापका माहवार खर्च तो मेरी समझ में ज्यादा से ज्यादा एक हजार होगा। विश्वेश्वर---अब आप यह समझ लीजिए, दो सौ रुपए माहवार तो सवारियों का खर्च है, एक मोटर और एक घोड़ा-गावी; सवा सौ रुपए नौकरों की तनन्याह, पाँच मर्द है, और दो स्त्रियाँ । १००) माहवार चाय:सिगरेट में खर्च हो जाता है। धनश्यामचाय-सिगरेट में १००) रुपए माहवार ! विश्वेश्वर----क्यों, क्या बहुत है ? आप इतने ही में घबरा गए। लंदन में धनी. लोग दो-दो ; तीन-तीन हजार रुपए माहवार तक सिर्फ चाय-सिगरेट में खर्च कर डालते हैं। श्राप तो १००) ही रुपए सुनकर घबरा गए! घनश्याम-मेरी समझ में नहीं पाता कि जोग कैसे तीन-तीन हजार रुपए चाय-सिगरेट में उड़ा देते हैं ? विश्वेश्वर~क्यों भई, वह आपकी कल्पना शक्ति कहाँ गई ? याद है, जब हम-तुम फोर्थ ईयर (पी० ए० क्लास ) में पढ़ते थे, तब तुमने कहा था कि कल्पना से मनुष्य सब कुछ जान सकता है। - . 1