पृष्ठ:चित्रशाला भाग 2.djvu/१३४

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चित्रशाला कितने मो, कितने बने और कितने बिगड़े। विश्वेश्वरनाथ इतने समय में विलायत से बैरिस्टरी पास करके तौट श्राए, ग्रंस्टिस प्रारंभ कर दी, और वह उलने भी बगी। इधर घनश्यामदास ने दी० ए० पास करने के बाद एल० टी. की परीक्षा भी पास कर दी। दो-तीन वर्षों तक तो वह इधर-उधर अध्यापक रहे; परंतु एक वर्ष से अपने ही नगर के गवर्नमेंट स्कूल में सेट मास्टर हैं । वेतन १९०) रुपए मासिक मिलता है। घर में घृद्ध माता-पिता के अतिरिक्त टन को पत्नी है, और दो संतानें-एक तीन वर्ष त पुत्र और एक डेढ़ वर्ष की कन्या । सहयात्री होने के कारण वनश्यामदास और विश्वेश्वरनाथ में बड़ी मित्रता है। घनश्यामदास बहुधा शाम को विश्वेश्वरनाथ की कोठी पर जाया करते हैं। एक दिन नियमानुसार संध्या-समय वनश्यामदास वैरिस्टर माहब की कोठी पर पहुँचे । उस वक्त विश्वेश्वरनाय अपने मित्रों के साथ टेनिस खेल रहे थे। वनश्यामदास टेनिस-जॉन के किनारे पड़ी हुई एक कुर्सी पर बैठ गए, और खेल देखने लगे। एक घंटे के बाद खेल खतम हुअा, और विश्वेश्वरनाथ रैकेट हाय में लिए हुए लॉन के बाहर श्राए । धनश्यामदास को बैठे देखकर बोल टठे-हलो वनश्याम, नुम कितनी देर में बैठे हो? वनश्याम न मुक्निाकर उत्तर दिया-केवल एक घंटे से। विश्वेश्वरनाय ने हसकर कहा-केवल एक बंटा! तो अधिक समय नहीं हुवा । यह कहकर विश्वेश्वरनाय भी पास ही एक कुसी पर बैठ गए । टनके अन्य तीन मित्र मी श्राकर कुलियों पर बैठ गए। कुछ देर के बाद अन्य तीन मित्र तो चले गए, कंचल वनश्यामदास और बैरिस्टर साहब बैं रहे। बैरिस्टर साहब ने गड़ाई लेकर कहा-कहो चार, कैसी कटती है भाजकन्न ?