पृष्ठ:चित्रशाला भाग 2.djvu/१५४

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पय-निर्देश १४. विश्वेश्वरनाथ-क्या कहूँ, अव तोवा करता हूँ कि धन के लोम में कभी न फंसूगा। ईश्वर आराम से रोटी-फपढ़ा दिए जाय, यही हजार न्यामत है धनश्याम खैर, आज आपने यह तो जाना कि भाराम से रोटी. कपड़ा मिलना भी एक न्यामत है। विश्वेश्वरनाय-है, और अवश्य है। संसार में यह बात यड़े भाग्यवान् ही को नसीय होती है।