पृष्ठ:चित्रशाला भाग 2.djvu/१५७

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चित्रशाला -- लदका सय पी लेफर पना गया। वह व्यक्ति थोड़ी देर तक चुपचाप या रहा। फिर बोला- -प्राज- कल हिंदू-मुसलमानों में बड़ी तनातनी हो रही है। गंगापुत्र-दी सरकार, मिर्या माई बैठे-बिठाए ऐदखानी करते है, यह अच्छी दात नहीं हिंद-नाति ही गऊ-जाति है । ऐसी ग़मखोर जाति दूसरी नहीं है। हम लोग है,अपनी गंगा-माता की सेवा करते हैं। ठंडाई-पटी मानी, मस्त पदे हैं। श्राप लोगों की जय मना रहे हैं। न उघी का देना, न माधो का देना। अब हम लोगों को देइते हैं। सो हम भी उय तक ग़म साते है, तभी तक । जिस दिन फ्रोध आ गया, मिर्या लोग सफा धरेंगे, पैसा रडायेंगे। यह व्यक्ति-हिंदू-मुसलमानों को प्रापस में लदना या बुरा है । यह ऐसी लदाई है कि इसमें जीते भी हार, और हारे तो हार हुई है। क्या कहें, न जाने हमारे देश पर रिस पाप-ग्रह की दृष्टि पड़ी है ! लोग अपना हानि-लाम नहीं समझते! गंगापुत्र-समर्मंगे, तो पड़तायने भी । हाँ मालिक, अपने गुलाम की यह बात याद रविणगान समगे, तो कपार पर हाथ घरके रोकेंगे। वह व्यक्ति-मला यह भी कोई बात है। एक जगह रहना, एक जगह बसना, फिर यह दशा कि एक दूसरे के प्राण लेने पर टतार हैं । राम-राम ! इस मूर्खता का भी कोई ठिकाना है ? एक अन्य महाशय उसी स्थान के निकट दूसरे तरम्त पर स्वदे वर पहन रहे थे। उन्होंने इन दोनों का कथोपकथन सुनकर कहा-ये मुसलमान ही हैं, जो हिंदुओं के प्राण लेने पर उतारू है । हिंद तो चींटी मारना भी पाप समझते हैं; वे किसी के प्राण क्या लेंगे? गंगापुत्र महाराज बोल टठे-सच है धर्मावतार ! हिंदू और बाहे. बो करें, हत्या नहीं कर सकते । 1