पृष्ठ:चित्रशाला भाग 2.djvu/१६१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१५४ चिन्नशाला खयाल है। लेकिन एक बात गौरतलब है । लड़ाई-झगड़े की आग कौन भड़काते हैं, इसका पता नहीं चलता। शेग्न साहब-अजी, यह तो जाहिर बात है कि मजहबी तबस्सुव ही इन मगहों की बुनियाद है । हिंदू और मुसलमान, दोनों में ऐसे सैकड़ों श्रादमी मिलेंगे, जो इंतहा के तपस्वी हैं। तबस्सुब को ये लोग मजदय का जेवर समझते हैं। ये ही लोग झगड़ा-फसाद कराने की कोशिश करते है। पंडितजी-प्रातिर इससे उन्हें फायदा ? गेस्ट साहब-फायदा? शेन सादी साहब का कौल याद कीजिए- नेश अतरव न थजपए कीनस्त ; मिक्रतिज्ञाए तबीयतश ईनस्त । अर्थात् विच्छ की तो डंक मारने की आदत होती है, उसे इससे क्या बहस कि किसी को तकलीफ पहुँचती है या आराम मिलता है ? यही हालत इन मुफ्रसिदों (मगढ़ा करानेवालों) की है। इनकी वसलत (स्वभाव) यही है कि बैठे-बिठाए आग भड़काना । अगर ये लोग ऐसा न करें, तो खाना हज़म न हो। शेग्न साहब की यह बात सुनकर पांडेयजी बहुत हसे । शेख साहब मी कुछ मुसकिराते हुए बोले-वल्लाह, मैं सच कहता हूँ, श्राप इसे खिलाफ मत समझिए । मैं एक नहीं, वीस श्रादमी ऐसे बता सकता हूँ, जिनका रात-दिन यही आम है। जुमे के दिन मैं जामा मसनिद में नमाज पढ़ने जाता हूँ। वहाँ देखता हूँ, अजीब अतीय किमाश के लोग जमा होते है । कुछ लोग ऐसे होते हैं कि वे नमाज़-बमाज तो बराए-नाम पढ़ते हैं, हाँ मुसलमानों को हिंदुओं के खिलाफ भड़काने की कोशिश न किया करते हैं । पांडेयजी-हम हिंदुओं में भी ऐसे बहुत-से आदमी हैं, जो मुसलमानों के खिलाफ हिंदुओं को भड़काते हैं। . .