पृष्ठ:चित्रशाला भाग 2.djvu/१६०

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कर्तव्य-पालन १५३ है पांडेयजी ने कहा-आज मैंने व्रत रखा था, जिसे श्राप लोग रोजा कहते हैं, इसीलिये नहीं गया । शेख साहब बोले- हाँ, ठीक है; आप शायद महीने में दो बार रोजा रखते हैं ? पांडेयजी-जी हाँ। कहिए, शहर की क्या खबरें है ? शेख साहब मुँह बनाकर बोले-खबरें क्या, हालत अच्छी नहीं है। रोज़-मर्रा तरह-तरह की अफवाहें उड़ती हैं । कुछ बदमाश इस बात की कोशिश कर रहे हैं कि हिंदू-मुसलमानों में झगड़ा हो जाय । पांडेयजी-यह बुरी बात शेख साहब-निहायत बुरी बात है । मगर किया क्या जाय, बदमाशों से कौन पेश पा सकता है ? खुदा अपना फ़ज़ल (कृपा) करे। बदमाशों को क्या, उन्हें न श्राबरू जाने का खौफ, जेल जाने का डर । मुसीवत बाल-बच्चेदार भले श्रादमियों पर है । फसाद बदमाश करते हैं और उसका खिमियाजा ( फल ) शरीफों को उठाना पड़ता है। पांडेयजी-मुसलमानों के इस बारे में कैसे ख़यालात हैं ? शेख्न साहब-मुख्तलिफ़ (भिल ) तरह के ख़यालात हैं । पंडित- जी, यह बात याद रखिए, शरीफ और बदमाश हर मजहब और हर क़ौम में हैं । शरीफ़ आदमी बुरी बात को हमेशा बुरा ही कहेगा, वह चाहे जिस कौम या फिरने का हो । बाज़ हिंदू समझते हैं कि मुसलमानों को क़ौम-की-क़ौम बदमाश है, और हिंदुनों को आजार (कट ) पहुँचाने की कोशिश करती रहती है । यह उनकी ग़लस- फहमी है। इसी तरह कुछ मुसलमान हिंदुओं को अपना जानी- दुश्मन समझते हैं । यह उनकी ग़लती है। मगर उन्हें समझावे कौन? पांडेयजी-~या भाप दुरुस्त फरमाते हैं । मेरा भी ऐसा ही .