पृष्ठ:चित्रशाला भाग 2.djvu/१६३

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चियशाला - . शेख साहब के मकान के सामने जरा कुछ हटकर एक पठान का मकान या । इनका नाम सश्रादतना था। यह पढ़े-लिखे वाजिबी- ही-वाजिवी थे, मगर प्रबल नंबर के चलते पुर्जे थे। इनकी विसातखाने की एक छोटी-सी दूकान थी । उसी से जीविका धनती यो। इनमें तपस्सुय कूट-फूटकर भरा हुआ था । यह व्यक्ति उन लोगों में से था, जो धर्म का अर्थ केवल विधर्मियों से घृणा करना समझते हैं। इनका एक जवान पुत्र भी था, जिसकी आयु २०-२२ वर्ष की होगी। इसका नाम रहमतश्रलीना था । धार्मिक द्वेप में रहमत अली भी किसी प्रकार अपने पिता से कम न था। यह व्यक्ति भी सदैव हिंदुओं को वक्र दष्टि से देखता रहता था। रात के घाउ बज चके थे । पिता-पुत्र, दोनों बैठे भोजन कर रहे थे। सामने कुछ दूर पर पानदान सामने रक्खे रहमत अली की माँ पान लगा रही थी। पान लगाते हुए रहमत अली की माँ ने कहा- ऐ, यह तीन-चार रोज़ से कैसी खबरें उड़ रही है ? कहते हैं, हिंदू- मुसलमानों में झगड़ा होगा। रक्षमतली बोल उठा -जो हिंदू मनाड़े का काम करेंगे, सो जरूर झगड़ा होगा। रहमत अली के पिता ने कहा-झगड़े की बातें तो कर ही रहे है। हिंदु अपनी शरारत से बाज़ नहीं पाते। लिहाजा झगड़ा ज़रूर होगा। रहमतग्रजी की माँ ने कहा--जो झगड़े का स्नीक हो, तो इस मुहल्ले से कुछ दिनों के लिये टल जायें । यहाँ हिंदुओं की आबादी ज़ियादा है। कहीं किसी वक्त निगोड़े हमला न कर बैठे। रहमतअली-हमला करना नानाजी का घर नहीं है ! दाँत खहे हो जायेंगे ! मुकाविना पड़े, तो हाल खुले । हिंदुओं को छठी का दूध याद न पा जाय, तभी कहना