पृष्ठ:चित्रशाला भाग 2.djvu/१६४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

कर्तव्य-पालन सयादताता-हिंदुओं में इत्तिफ़ान (मेल) तो है ही नहीं, हमला क्या ख़ाक करेंगे ? जिस वक्त झगड़ा हुआ, तो भी बाहर न दिखाई पड़ेगा, सब अपने-अपने दरवाजे बंद करके बैठ रहेंगे । निहायत बोदी कौम है। रहमतश्रली की मां-लाख बोदी हो,मगर तादाद में तो ज़ियादा हैं। मसल मशहूर है कि दबने पर चींटी भी काट खाती है । दुश्मन. से कभी बेखौफ न रहना चाहिए। रहमतअनी-~-हाँ, यह तो दुरुस्त है-~"दुश्मन नातवाँ हकीर व बेचारा शूमर्दा।" दुश्मन को कभी हक़ीर (तुच्छ ) न समझना चाहिए। सादतखाँ -कल मेरी शेख हशमतनली से इसी बारे में गुफ्तगू हुई थी। अजीब क्रिमाश के आदमी हैं । मैंने तो ऐसा नादमी ही नहीं देखा। रहमतअली की माँ-क्या कहते थे ? सादतखाँ-वह तो बस, हर बात में यही कहते थे कि मिल. जुलकर रहना चाहिए। रहमतयनी-ग्रजी, श्राप भी किस काफ़िर की बातें करते हैं। वह तो आधा हिंदू है। मरदूद जब देखो, हिंदुओं की हिमायत करता रहता है सभादतखाँ-हिंदुओं से उसका मेल-जोल भी खूब है। रहमतअली-अजी, मैं तो ऐसे मेल-जोल पर लानत भेजता हूँ। हिंदू और मुसलमान का मेल हो क्या । कुजा (कहाँ.) स्याही, कुजा स]दी। रहमतथली की माँ-हमारे पड़ोस में जो पंडितजी रहते हैं, यह तो भले आदमी हैं रहमतअली-कौन, पं. गंगाधर ?