पृष्ठ:चित्रशाला भाग 2.djvu/१९

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चित्रशाला


सेवा करना भी वह अपनी शान के खिलाफ समझती थीं। पति- सेवा का अर्य, उनकी समम्म में केवल इतना था कि पति से मीठी- मीठी बातें करके उन्हें अपने ऊपर इतना मुग्ध कर लेना कि वह किसी बात से इनकार ही न कर सके। उनके लिये भोजन का प्रबंध कर देना, पान लगा देना, हारमोनियम बजाकर सुनाना, और कोई समाचार-पत्र अथवा पुस्तक पढ़कर सुना देना । यद्यपि बह सीने. पिरोने में अपने को सिद्धहस्त समझती थीं, और अच्छे से अच्छे दी के लिए हुए कपड़ों में भी छिद्रान्वेषण किए बिना उन्हें कम नहीं पढ़ती थी; परंतु क्या मजाल लो अपने हाथ से किसी कपड़े में पुल टाँगा भी लगावें यह काम वर्जियों का है। भोजन पकाने में उनकी समानता कोई शाही बाबची भी नहीं कर सकता था, परंतु उन्होंने किसी को कभी कोई चीज़ बनाकर नहीं खिलाई। क्यों नहीं दिलाई ? खिला कैसे ? आँच और धुएँ के सामने बैठने से सिर में दर्द होने लगता है । यदि कोई ऐसा चूल्हा हो, जिसमें न ांच लगे और न धुना हो, तब तो बहू रानी भोजन बनायें । फिर टस समय भोजन का स्वाद न मिले और खानेवाले उँगलियाँ चाटते न रह जायें, तो नान नहीं। हाँ, संसार में केवल एक काम था, जिसे वह अपने योग्य समझती थीं, वह काम था- मो.रे इत्यादि शुनना । पति के लिये उन्होंने बड़े परिश्रम ले १५.२० मिनट गेज़ मेहनत करके, लगभग तीन महीने में एक मकलर जुना या। जिस समय मालर बनकर तैयार हुआ, उस समय पहले तो उनका यह इच्छा हुई कि उसे किसी कला-कौशल की प्रदर्शिनी में मेज है; परंतु पाले पति से यह कह चुकी थी कि तुम्हारे लिये युन रही है। इसलिये मन मसोसकर रह गई । यह प्रदर्शिनी का दुनांग्य या कि प्रियंदा देवी का नकर उसकी शोमा न बढ़ा सका। र, पन्नो प्रदर्शिती की शोभा न बढ़ी नो न सही, परंतु 'S .