पृष्ठ:चित्रशाला भाग 2.djvu/३८

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.. W सुधार 1 वाबू साहब कुछ क्षण के लिये सिटपिटा गए; परंतु फिर सँभल गए और बिगड़कर बोले-दूना किराया कैसा? राधाकांत-मैंने अभी अपने नौकर को टिकिट लेने के लिये भेजा था, आपने उससे दूना किराया लेकर टिकिट दिया। बाबू-श्राए झूठ बोलते हैं रामानंत-क्या झूठ? बाबू-~हाँ झूठ। हम लोग ऐसा कभी नहीं कर सकते । दिन- भर हजारों मुसाफ़िर पाते हैं, यदि हम ऐसा करें, तो रहने न पाएँ । श्राप एक शरीफ आदमी पर इल्जाम लगाते हैं ? राधाकांत हँसकर बोले-तो क्या आपने दूना किराया नहीं लिया? बाबूदापि नहीं। राधाकांत ने एक काग़ज़ निकाला जिस पर कुछ नकली हस्ताक्षर थे । उसे बाबू साहब को दिखाकर बोले-देखिए, यह उन सब लोगों के हस्ताक्षर हैं, जिनसे आपने अभी-अभी ज्यादा चार्ज किया है। आप यह काम बहुत दिनों से कर रहे हैं, इसलिये मैंने यह प्रबंध किया। अब यह केस स्टेशनमास्टर के सामने पेश किया जायगा। इतना सुनते ही और काग़ज़ देखकर बापू साहय के होश उड़ गएं । बोले-मुअाफ़ कीजिए। राधाकांत-सुफ़ ! अभी आपने मुझे ही पाड़े हाथों ले डाला। झठा बनाने की चेष्टा की और अब मुश्राफी मांगते हैं ? वाबू साहब शर्म से सर झुकाकर बोले-निःसंदेह मुझसे बड़ा. अपराध हुश्रा, परंतु अव आप दया कीजिए । सच जानिए, मैं किसी काम का न रहूँगा, वेमौत मर जाऊँगा। राधाकांत-पर आप तो हरएक के साथ यही व्यवहार करते हैं। 1