पृष्ठ:चित्रशाला भाग 2.djvu/४१

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प्रेम का पापी 3 वह-कैसे ? यह गाढ़ी तो सहारनपुर लौट जायगी। टि०-०-आप अभी समझे नहीं । देखिए, मेल लखनऊ नहीं जा सकती ; पर सहारनपुर लौट सकती है। इसी प्रकार पैसेंजर लखनऊ वापस जा सकती है । इसलिये यह प्रबंध किया गया है कि इस मेल को पैसेंजर बनाकर सहारनपुर लौटा दिया जाय और उस पैसेंजर को मेल बनाकर लखनऊ वापस दिया जाय । इसलिये इस मेन के मुसाफ़िर पैसेंजर में जायेंगे और पैसेंजर के मुसाफ़िर इस मेल में श्रावेंगे। अव श्राप समझ गए ? वह महाशय कुछ घबराकर बोले-हाँ, समझ तो गया, पर पैसे- जर कितनी दूर है ? टि-को-होम-सिगनेन के पास है, यहाँ से कोई डेढ़ लीग का फासला होगा। वह-तो उतनी दूर असबाब कैसे जायगा ? कोई कुली भी तो नहीं दिखाई पड़ता, न-जाने सव आज कहाँ मर गए । टिकिट-कलेक्टर ने कहा-कुक्षी तो एक भी खाली नहीं है। वे इस ट्रेन के पार्स ल और डाक ढो ढोकर पैसेंजर में पहुँचा रहे हैं और पैसेंजर के पार्सन इसमें ला रहें हैं। वह महाशय कुछ बिगड़कर बोले-रेलवे ललियों से अपना काम ले रही है ; पर मुसाफिरों का कुछ ख़याल नहीं । टिकिट-कलेक्टर ने कहा-वह काम बहुत ज़रूरी है जनाब, मेल का जाना नहीं रुक सकता । मुसाफिर तो आगे-पीछे भी जा सकते हैं। आप अगर असबाब ले जा सकते हों, तो ले जाइए, नहीं तो यहीं पड़े रहिए । जब लाइन साफ हो जाय और कोई दूसरी ट्रेन उधर जाय, तब उसमें चले जाइएगा । परंतु लाइन आठ-दस घंटे के पहले साफ न हो सकेगी। यह कहकर टिकिट-कलेक्टर एक श्रोर चला गया । वह महाशय .