चियशाजा बड़े परेशान हुए । क्या करें, क्या न करें । उन्होंने गाड़ी में यंठी हुई अपनी पतो से कहा श्रय क्या करना चाहिए ? कुली कोई । नहीं, और अखबार काझी है, यहाँ तक पैसे पहुंचेगा ? पत्री 1-~न हो, यही पढ़े रहो। जब कोई दूसरी गादी नाय, उसमें चले चलना। वह पाठ-दस घंटे पड़े रहना पड़ेगा। इस तरह तो दसग्यारह बजे तक लखनऊ पहुँच जायेंगे। खाली असबाय की दिकत है असयाच डिसी तरह यहाँ तक पहुँघ जाता, तो अच्छा देखो, किसी कुली को देखता हूँ। यह कहकर वह प्लेटफार्म पर इधर-उधर अली की तलाश करने लगे । तीन-चार कुली फर्स्ट तथा संकिंड क्लास के मुसाफिरों का प्रस. बाय ढो रहे थे। उनमें से एक से उन्होंने कहा- क्यों भाई, हमारा असंबाय भी पहुँचा दोगे? गुली-धी छुट्टी नहीं है, यायू । साहय लोगों का प्रसपाय पहले पहुँचा दें, तब देखा जायगा । घह-अरे भाई, जो मजदूरी साहब नोग दें, वही इमसे भी ले लेना कुनी-मसूरी की कोई बात नहीं, टेसन-मास्टर सपा होंगे। है कि पहले साहय लोगों का असयाव पहुँचानी । उक्त महाराय मन-ही-मन यढ़े कुन्द हुए । स्टेशन-मास्टर की तो सूरत से उन्हें नफरत हो गई । साहच लोगों के सौभाग्य पर ईप और अपने दुर्भाग्य पर क्षोभ भी हुआ । सोचने लगे-समय की बात है । रुपया-पैसा सब सचंने को तैयार हैं, फिर भी कंबत कुली नहीं नसीब होता । इस समय उन्हें उन लोगों पर भी इंपी होने लगी, जिनके इतनी हिम्मत और इतना बलं था कि वे अपना असबाब सिर पर बादे दौड़े चले जा रहे थे। अपने मन में कहा हमसे तो ये ही उनका हुकुम
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