पृष्ठ:चित्रशाला भाग 2.djvu/४३

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प्रेम का पापी , अच्छे ! किसी की सहायता के मुहताज तो नहीं हैं । यह इधर-उधर घूमफर लौट आए और पत्नी से बोले-जुली तो कोई नहीं है । जो दो-एक है भी, वे साहब लोगों का असवाब ढो रहे हैं। गोरे चमड़े के 'भागे काले हिंदोस्तानियों को कौन पूछता है। खैर, गाड़ी से तो उतरो। येचारी स्त्री गाड़ी से उतरी । उसके साथ एक लड़की भी उसरी, जिसकी अवस्था १४-१५ वर्ष की होगी। लड़की अत्यंत रूपवती थी। उसके मुख की प्राकृति कुछ-कुछ उक्त महाशय से मिलती थी । लड़की ने कहा-भैयाजी, असबाब कैसे उतरेगा? वह महाशप जोश में आकर बोले-मैं ही उतारूँगा। वह गाड़ी में चढ़ गए । काँख-खकर तीन ट्रंफ और एक बिस्तर का पुलिंदा नीचे प्लेटफार्म पर रक्खा । असबाब उतारकर रुमाल से माथे का. पसीना पोछते हुए कहने लगे-क्या कहें, बेकार यहाँ पढ़े रहना पड़ेगा। इस समय यह असबाब खल गया। उसी समय एक सुंदर तथा बलिष्ठ युवक, जिसकी उम्र २३-२४ वर्ष के लगभग होगी, दौड़ता हुआ पाया और बोला~महाशय, इस गाड़ी में मेरा. छाला रह गया है, थापने तो नहीं देखा ? वह-जी नहीं, मैंने तो नहीं देखा। आप गाड़ी में देख लीजिए। नवयुवक गाड़ी में चढ़ गया और ऊपर के एक वर्थ से छाता उठा लाया। वह महाशय बोले-क्यों साहव, मिल गया ? नवयुवक-जी हाँ । बड़ी खैर हुई, किसी मुसाफिर की नार नहीं पड़ी, नही तो लेयर चल देता । कहिए, श्राप कैसे खड़े हैं ? क्या पैसेंजर से आए हैं ? वह महाशय तो भरे हुए खड़े ही थे। सहानुभूति की प्राशा से उन्होंने कहा -क्या कहें साहब, पैसेंजर में जाना चाहते हैं, पर भल. ब ले जाने को कोई कुली नहीं मिलता। . .