पृष्ठ:चित्रशाला भाग 2.djvu/५७

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परिणाम (१) शाम के सात बन चुके हैं। माघ-मास की शिशिर-समीर धनाच्यों के ऊनी वस्त्रों को भेदकर उनके शरीर में पकँपी उत्पन्न कररही है। ऐसे समय में एक अर्द्धयपरक भितुक, फटे-पुराने पड़े पहने, शीत से कॉपता हुआ, चना जा रहा है। उसकी बाई पोर एक झोली पड़ी है, सिर पर कुछ नफरियाँ लदी हैं, जिन्हें यह पाएँ हाथ से साधे हुए है और दाहिने हाथ में एक सप्तवय पालिका का हाथ पकड़े हुए है। पालिका एक फटा सलूका और एक पुरानी तथा मैकी धोती पहने , . पालिफा धोती का पल्ला भली-भाँति शरीर में चपेटती हुई, सिसकी भरके बोली-यावा, भाग वढ़ा जाता है । भिक्षुक ने कहा-हाँ, श्राज हवा चल रही है, पनो जगदी डेरे पर पहुंचकर ता। उसी समय उधर से दो-तीन पुरुष निकले लो ऊनी कपड़े पहने हुए थे। ये लोग हँसते-खेलते जा रहे थे। बालिका ने उनकी ओर ध्यानपूर्वक देखकर अपने पिता से कहा-बावा, इनको मादा नहीं लगता? पिता ने उत्तर दिया- ऊनी कपड़े पहने हैं, इन्हें मादा क्या लगेगा। बालिका कुछ क्षण तक कुछ सोचती रही । उसकी, जिसने कमी ऊनी कपड़ों का सुख नहीं भोगा था, समझ में न पाया कि उनी कपड़े किस प्रकार शीत को पास नहीं आने देते। उसने फिर पूछा--बाबा, क्या ऊनी कपड़ों में जाड़ा नहीं लगता ?