पृष्ठ:चित्रशाला भाग 2.djvu/५६

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चिनशाना मोहन ने श्यामाचरण के मुख पर अपना मुख रखकर कहा- भाई, मैंने तुम्हारा पत्र पढ़ा। यह सुनते ही कुछ सकिंदों के लिये श्यामाचरण चैतन्य से हो गए। - मोहन ने कहा-भाई, यदि तुम मुझसे पहले यह रहस्य यता देते, तो मैं चमेती का विवाह तुम्हारे ही साथ कर देता । चाहे समाज मुझे ठुकरा देता, चाहे मैं जातिच्युत कर दिया जाता, पर तुम्हारे लिये सब सह लेता । श्रोत ! तुमने मुझे मित्र समझकर भी मुझसे कपट किया। श्यामाचरण ने नेत्र-विस्फारित करके कहा-क्या तुम चमेली से मेरा विवाह कर देते? मोहन ने कहा-निश्चय कर देता। श्यामाचरण ने एक 'पाह'. भरी। तत्पश्चात् अपना सिर उठाकर कहा-मोहन, तब तो मैं पापी नहीं हैं ? चात् श्यामाचरण का सिर ढलक गया । "प्रेम का पापी" शरीर-बंधन से मुक्त होकर परम-धाम को सिधार गया । . इतना कहने के