पृष्ठ:चित्रशाला भाग 2.djvu/५९

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परिणाम LA हमारे परिचित भिखारी ने थोड़ी लकड़ियाँ निकालपार अलाव के पास रख दी और वह बोला-लेनो भैया, यह हमारा हिस्सा है। इतनी लकड़ी हैं सो इनमें रोटी बनायेंगे । बालिका पहुँचते ही अलाव के पास बैठकर तापने लगी थी। भिक्षुक ने एक मिट्टी के कड़े में बाटा माड़ा । एक मिट्टी की हंडिया में दाल डालकर चूल्हे पर चढ़ा दी । चूल्हा चार-पाँच ईंटें चुनकर बना लिया गया था। इस प्रकार भोजन तैयार करके भिक्षुक ने अपनी कन्या को खिलाया और स्वयं खाया; तत्पश्चात् दोनों अनाव के पास बैठकर तापने लगे। एक भिक्षुक ने हमारे परिचित भिक्षुक से कहा-भैया रामजाल, आज तो लफड़ी बहुत हैं, बड़े मज़ में रात पार हो जायगी। रामलाल ने कहा-हाँ, आज तो जाड़ा न सताएगा। एक अन्य भिखारी बोला--आज जाड़ा पास नहीं फटकेगा, रात- भर मजे से सोनो। कुछ देर तक सब लोग चुपचाप बैठे तापते रहे। हठात् एक व्यक्ति ने कहा-काहे भैया, गिरस्ती (गृहस्थी) में अधिक आनंद है कि इसमें ? दूसरे ने कहा-अरे भैया, गिरस्ती की क्या बात है, जो मज़ा गिरस्ती में है वह इसमें कहाँ। तीसरा बोल उठा--गिरस्ती ससुरी में क्या मज़ा है, रात-दिन संसव (संशय.) लगा रहता है, यह नामो, वह लायो। आज छठी है; अाज पसनी है, आज जनेऊ है श्राज ब्याह, यही लगा रहता है। इसमें क्या, खाने-भर को माँग लाए, बस, खा-पी के मजे से पैर फैलाकर सोए, न किसी ससुर का लेना न किसी ससुर का देना । चौथे ने कहा, हाँ भैया, ठीक कहते हो। और एक बात तो देखो कि कोई बंधन नहीं, चाहो अभी विलायत को चन दो। गिरस्ती में तो आदमी तेली का बैल बन जाता है, न कहीं श्रा सके न जा सके। . .